________________ लघुविद्यानुवाद * सर्प की केचुली को मस्से के नीचे वाधे तो बवासीर ठीक होता है। दाये हाथ की बीच की अगुली मे लोहे को अगूठी पहनने से पथरी रोग शात होता है। सुबह के समय दक्षिण दिशा की ओर मुह करके हाथ मे गुड की डली लेकर उसे दातो से काट कर चौराहे पर फेक देने से आधा शीशी का रोग शात होता है। गाय के घी मे सोरा मिलाकर सूधने से आधा शोशी रोग दूर होता है। दूध के दांत जिसके गिरे हो उस दात को ताबीज मे मढवा कर पास रखने से दात पीडा शात होती है। रेशम के डोरे मे जायफल की माला गू थ कर रोगी के गले मे बाधने से मृगी रोग शात होता है। गाय के बाये सीग की अगूठी बनवा कर, दाये हाथ की कनिष्ठा अगुली मे पहनने से मृगी का दौरा आना जल्दी बन्द हो जाता है। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र मे उत्तर दक्षिण की ओर वाले पवित्र स्थान से व्याघ्र नखी, बूटी की जड उखाड लावे और उसे स्त्री के कमर मे वाधने से प्रदर रोग शात होता है। काली मूसली की जड को हाथ या पांव मे बाधने से रुका हुमा गर्भ की प्रसूति हो जाती है। जेष्ठा नक्षत्र मे अडुसे को जड लाकर उसे धूप देकर स्त्री की कमर मे बाधने से नष्ट पुष्पा स्त्री 30 दिन के भीतर फिर रजस्वला होने लगती है। तिल की जड, ब्रह्मदण्डी की जड, मुलहठी, काली मिर्च और पीपल इन सबको जौ कुट का काढा बनाकर पीने से बन्ध मासिक धर्म फिर से होने लगता है। शिव लिंगी के बीज की गुड के साथ गोली बना कर ऋतु स्नान के बाद तीन दिन खाकर मैथुन करने से गर्भ ठहर जाता है। निर्गण्डि के रस मे गोखरू के बीज डालकर सात दिन तक पीने से स्त्री गर्भ धारण करती है। श्रवण नक्षत्र मे काले एरण्ड की जड लाकर, उसे धूप, दीप देकर वन्ध्या स्त्री के गले में बाधने से वन्ध्यात्व दोष दूर हो जाता है / वह गर्भ धारण करती है।