________________ 652 लघुविद्यानुवाद प्रियगु) लज्जावती के चूर्ण की गोलिया बनावे, उन गोलियो को बरावर नमक सहित एक बर्तन मे डालकर पकावे / इन गोलियो को भोजन आदि के साथ खिलाने से स्त्री वश मे होती है। बड, गूलर, पीपल, पिलखन, अजीर के दूध तथा पडुको रस मे कपास, पाक, कमल सूत्र, सेमल की रूई, सन की बनी हुई बत्ती को भावना देकर काले तिलो का दीपक जलाने से तीन लोक वश मे होते है। निर्गुण्डी और सफेद सरसो घर के द्वार पर अथवा दुकान के द्वार पर रक्खो जावे तो अच्छा क्रय-विक्रय होता है। जो स्त्री काजिका (सौवीर) के साथ जवे के फूल को मल कर ऋतु काल मे पीती है, वह फिर मासिक से नही होती है, यदि हो भी जावे तो गर्भ धारण तो कभी भी नही करती है। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी या अष्टमी सहदेवि लाकर चूर्ण करे, फिर जिसको पान मे खिलावे तो सात दिन मे आता है। उत्तर दिशा मे उत्पन्न होने वाली क्रौच की जड को गो मूत्र मे पीसकर उसका मस्तक पर तिलक करने से शाकिनी उसमे अपना प्रतिबिम्ब देखती है। रवि पुष्यामृत के योग मे ब्राह्मी, शतावरी, शखा होली, अधा जारा, जावत्री, केशर मालकागणी, चित्रक, अकलकरो और मिश्री का चर्ण करके सर्व सम भाग लेकर, सवेरे 14 कोमल अदरख के रस मे 21 दिन तक खाने से बुद्धि की वृद्धि होती है। पुष्या योग मे काला धतुरे की जड अथवा सफेद धतुरे की जड शनिवार को निमन्त्रण देकर, रविवार को सध्या काल में नग्न होकर ग्रहण करे, फिर कन्या कत्रीत सूत लपेट कर, धूप खेवे, फिर उस जड को अपने कमर मे बाधने से स्वप्न मे वीर्य का कभी स्खलन नही होता है। पुण्यार्क अथवा हस्तार्क मे रूद्रवति और ( ) का पचाग लेकर पानी मे गोला बनाकर रक्खे, जव कार्य पडे तब अपने शरीर मे लेप करने से अग्नि शीतल के समान लगती है। याने अग्नि मे नही जलता है। मूलार्क योग मे सरपखा का पचाग, वीसरवपरा का पचाग, इन्द्रवारुणी का पचाग शिव लिंगी का पचाग, इन सब को एकत्र करके पेट पर लेप करने से उदर रोग शात होते है /