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________________ लघुविद्यानुवाद 651 शरद पूर्णिमा को ब्राह्मी का रस, वच और कपिला गाय का घी, इन तीनो चीजो को बराबर 2 लेकर, कासे की थाली मे इन चीजो को खूब गाढा 2 लगावे, फिर उसमे भक्तामर का 6 न० का यन्त्र लिखे, ऊपर अष्टगन्ध से ॐ ह्री श्री क्ली ब्लू वद् वद् वाग्वादिनी लिखे, फिर चन्द्रमा के प्रकाश मे रात्रि भर उस थाली को एक ऊचे पाटे पर विराजमान कर रक्खे, सवेरे एक 2 अक्षर को खावे, तो सरस्वती वश मे होती है / महान् बुद्धिमान होता है। ब्रह्म दडी को शनिवार के दिन शाम को अक्षत, सुपारी को रखकर कु कुम के छीटे लगाकर नोत दे, फिर रविवार की शाम को नग्न होकर धूप खेवे, फिर ब्रह्मदण्डी का पचाग ले, फिर कपड़े पहनकर घर ले आवे, उस ब्रह्मदण्डी को कैसा भी घाव हो, व्रण हो, किसी भी प्रकार का गडगुमड हो, उसके ऊपर लेप करने से शीघ्र ही आराम हो जाता है। रवि पुष्य के दिन जिस स्त्री को पुत्र पैदा हुआ हो, उस स्त्री की जेर लेकर छाया मे सुखा देवे / एकान्त मे फिर उस जेर को रूई के अन्दर लपेटकर बत्ती बनावे। दीपक मे रख कर जलावे, तो घर मे मनुष्य ही मनुष्य ही दिखते है / चोर चोरो नही कर सकते है / ___ रवि पुष्य को (लजालु) छुइमुइ का पचाग को ग्रहण करके छाया मे सुखाले, फिर जो मनुष्य कई दिनो से खो गया है, उस मनुष्य के कपडे मे लजालु को बाध कर, त्रिकाल उस वस्त्र मे कोडा लगावे तो खोया हुआ मनुष्य शीघ्र ही आता है। 12 भाग ताबा, 16 भाग चादी, 10 भाग सोना, इन तीनो का पृथक 2 तार खिचवा कर, रविपुष्य या गुरु पुष्यामृत योग रहते 2 अ गुठी बनवाना और पचामृत से जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक करके, उस अभिषेक मे उस अगूठी को धोकर सीधे हाथ की तर्जनी अगुली मे पहनना चाहिए, जिससे सर्व प्रकार का तीव्र दारिद्र नाश होता है। किन्तु रवि या गुरू पुष्यामत योग मे ही अगुठी बनवाना चाहिये और उसी ही योग के रहते 2 ही पहन लेना चाहिये। तब ही कार्यकारी हो सकती है। आचार्य श्री महावीर कीति जी महाराज इस दारिद्र नाशिनी अ गुठी के लिए सबको कहा करते थे। लोग, केशर, चन्दन, नाग केशर, सफेद सरसो, इलायची, मनशिल, कूठ, तगर, सफेद कमल, गोरोचन, लालचन्दन, तुलसी, पिक्कार, पद्मास्वा, कुटज तो पुप्य नक्षत्र मे वरावर लाकर, सबको धतूरे के रस मे कुमारी कन्या से पिसवाकर, उसका चन्द्रोदय होने पर तिलक करने पर संसार मोहित होता है। लाल कनेर के पुष्प, भुजगाक्षि जटा, ब्रह्मदण्डी, इन्द्रायन, गोबन्धनी (अधो पुष्यिया
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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