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________________ लघुविद्यानुवाद 631 प्रयच्छतु न / ॐ कर्मण पुण्याह भवतो व वतु इति प्रार्थयेन् / प्राथि नवित्रा: पुण्याह कर्मणोऽस्तु "इतिव यु / ॐ कर्मणेस्वस्ति भवतो व वतु / स्वस्ति कर्मणेऽस्तु कर्मऋद्धि भवतो बुवतु "कर्मऋद्धिस्तु / विशेष -अगर होम नहीं करना है तो जितना जप किया, उतने जप का दशास, जप चौगुना जप, ज्यादा कर लेना चाहिये / जसे-एक हजार जप का दशास 100 जप हुग्रा, उस 100 जप का चौगुना जपने से, याने 400 बार जप कर लेने पर होम की पूर्ति हो जाती है। फिर अग्नि होम करने की आवश्यकता नही पडती है। मन्त्र जप के बाद दशांस होम करने के लायक होम कुण्डों का नक्शा होम कुण्ड नीचे दिये गये नक्शे के मुताविक बनावे, और होम कुण्ड के लिये ईटे कच्ची होनी चाहिये / वध, विद्वे पण, उच्चाटन कम मे आठ अगुल लम्बी समिधा ले (लकडी)। पुष्टि कर्म मे नो अगुल, शान्ति, आकर्षण, वशीकरण मे, स्तम्भन, कर्म मे वारह अगुल की लकडियाँ हो / लकडिया दूध वाले वृक्ष की हो। तीर्थधर कुण्ड (1) ភ្នំ गाई पन्परिन
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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