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________________ लघुविद्यानुवाद वशीकरण अर्थात् वश मे करना [ अपने अधीन करना ] इसके प्रयोग मे पूर्वाह्न, दोपहर के पहले काल मे स्वस्तिकासन युक्त उत्तर दिशा की तरफ मुख करके कमल मुद्रा सहित मूंगे की माला से जपे । कुसुमवर्ण वपट्पल्लव उच्चारण करता हुआा जाप्य करे । १० आसन डाभ रक्त वर्ण यन्त्रोद्धार । रक्त पुष्प वाम हस्तसे डाभ के आसन पर बैठ कर लाल कपडे सहित यन्त्रोद्वार • लाल फूल रखता हुना वाये हाथ से जाप्य करे । .. कृष्टि पूर्वाह्न दण्डासनं अंकुश मुद्रा दक्षिणदिक् । प्रवालमाला उदपार्कवर्ण वौषट् स्फुट अंगुष्ठमध्यमाभ्यं तु || प्राकृष्टि - बुलाना इसके प्रयोग मे पूर्वाह्न ( दोपहर से पहले ) काल मे दण्डासनयुक्त कुश मुद्रा - सहित दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके मूंगे की माला से उदयार्कवर्णवौषट उच्चारण करता हुआ ग्रगूठे और वीच की गुली से जाप्य करे । - निषिद्धसन्ध्यासमय भद्र पीठासन ईशानदिक् वज्रमुद्रा । जीवापोतामालिका धूम्र बहुभ कनिष्ठांगुष्ठयोगेन || 1000 निषिद्ध कर्म या मारण कर्म समय मे भद्र पीठासन युक्त ईशान [ उत्तर और पूर्व दिशा के बीच] की तरफ मुख करके वज्र - मुद्रा युक्त जीवापोता माला से घूप खेता हु करता हुआ गूठे और कनिष्ठा से जाप करे । नोट • जो बगैर रक्षा मन्त्र के जप के मन्त्र साधन करते है अक्सर व्यन्तरो से डराये जाकर बीच मे मन्त्र साधन छोड देने से पागल हो जाते है इसलिए जब कोई मन्त्र सिद्ध करने बैठे तो मन्त्र जपना आरम्भ करने से पूर्व इनमे से कोई रक्षा मन्त्र जरूर जप लेना चाहिये । इससे मन्त्र साधन करने मे कोई उपद्रव नही हो सकेगा और कोई व्यन्तर वगैरह रूप बदल कर ध्यान मे विघ्न नही डाल सकेगा। कुण्डली के अन्दर ग्रा नही सकेगा । इन मन्त्रो का जाप्य भगवान की वेदी के सामने करना चाहिए या देवस्थान मे जाप्य करना चाहिये या घर मे एकान्त स्थान मे जाप्य करे । किन्तु घर मे होम और पुण्याहवाचन करके णमोकार मन्त्र का चित्र और जिनेन्द्र भगवान का चित्र, दीप और धूपदानी समक्ष रख कर, आसन पर बैठकर और शुद्ध वस्त्र पहनकर जाप्य करे । उस स्थान पर बच्चो आदि का उपद्रव या शोर नही होना चाहिए । मन्त्र की जाय अत्यन्त शुद्ध, भक्ति के साथ करनी चाहिए । मन्त्र में किसी प्रकार की प्राकुलता चिन्ता, दुख, शोक आदि भावनाएँ नही रहनी चाहिए । जाप्य करते समय मन को स्थिर रखना चाहिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके जाय देनी चाहिए । जाप्य मे बैठने से पहले समय की मर्यादा कर लेनी चाहिए। पद्मासन से बैठना चाहिए, मौन रखना चाहिए। जितने दिन जाप्य कर, उतने दिन एकाशन, किसी रस का त्याग, वस्त्र आदि का परिमाण करे। जमीन, चटाई या तख्ते पर सोवे जाप्य समाप्त होने
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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