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लघुविद्यानुवाद
सव कार्यो मे पाँचो वर्णो के फूलो को माला श्रेष्ठ है, परन्तु दुष्टो को डराने मे तथा स्तम्भन करने व कीलने मे कठोर (सख्त) वस्तु के मणियो की माला से जाप्य करे ।
धर्मार्थी काममोक्षार्थी जपेद् वै पुत्र जीविकाम् । [स्त्रजम्]
शान्तये पुत्र लाभाय जपे दुत्तममालिकाम् ॥५॥ मन्त्र साधन करने वाला धर्म के लिये तथा काम और मोक्ष के लिये तथा शान्ति के लिये और पुत्र प्राप्ति के वास्ते मोती आदि की उत्तम माला से जाप्य करे। शान्ति से यह तात्पर्य है कि जैसे रोगी आदि के लिये रोग की शान्ति करना या दैवी वगैरह उपद्रव हो उसकी शान्ति करना । अन्य कामो मे जीवापोता को माला जाप्य करे।
शान्ति अर्द्धरात्रि वारुरिण दिक् ज्ञानमुद्रापंकजासन ।
मौक्तिक मालिका स्वच्छ स्वेते पू० चं० कां० स्वरे ॥६॥ शान्ति के प्रयोग मे मन्त्र जाप्य करने वाला आधी रात के समय पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जान-मुद्रा महित कमलासन युक्त मोनियो की माला से स्वच्छ श्वेत वाएँ योग पूरक च० का० का उच्चारण करता हुआ जाप्य करे ।
स्तम्भनं पूर्वाह्न वज्रासने पूर्वदिक् शंभुमुद्रा ।
स्वर्णमणिमालिका पीताम्बर वर्ण ठः ठ ॥७॥ स्तम्भन 'रोकना तथा कीलना] के प्रयोग मे पूर्वाह्न अर्थात् दुपहर से पहले काल मे वज्रासन युक्त पूर्व दिशा की तरफ मुख करके स्वरण के मणियो की माला से पीले रंग के वस्त्र पहने हुये ठ ठ पल्लव उच्चारण करता हुआ जाप्य करे।
शत्रुच्चाटने च रुद्राक्षा विद्वषारिष्टजंप्तजा ।
स्फाटिकी सूत्रजामाला मोक्षार्थानां ( नां) तू निर्मला ।।८।। दुश्मन का उच्चाटन करने के लिये रुद्राक्ष की माला, वैर मे जिवा पोते की माला, मोक्षाभिलापियो को स्फटिक मरिण की तथा सूत्र की माला श्रेष्ठ है।
उच्चाटनं वायव्यदिक् अपराह्नकाल कुक्कुटासन ।
प्रवालमालिका धूम्रा च फटित् तर्ज न्यगुष्ठयोगेन ॥६॥ उच्चाटन के प्रयोग मे वायव्य कोण । पश्चिम और उत्तर के बीच में ] की तरफ मुख करके अपराह्न [ दोपहर के वाद ] मे कुक्कुटासन युक्त मूंगे की माला से धुवे के रग व फट पल्लव लगाकर अंगूठा और तजनी से जाप करे ।
वशीकरणे पूर्वाह्न स्वास्तिकासन उत्तरदिक कमलमुद्रा । विद् ममालिका जपा कुसुम वर्ण वषट् ॥१०॥