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________________ ५३० लघुविद्यानुवाद रूढा भने 'चक' लाल यन्ती इ 'रूपा' लक्ष्मी रूपात 'तत्त्व' श्रीचक्र अष्टार चक्र श्री वीज लेखनीय चक्रशब्देनाष्टार चक्र - गृह्यते पुनस्तत्त्वै स्सप्त तत्व वीज रुद्भूता 'या' कान्ति, स्तया, सकल गुण निधे, रितिपदेन कलाभि पोडश कलाभि गुणरष्ट बीजाक्षर स्तथा निध्याक्षरे स्तथा, मूल मन्त्रेण रूप वेप्टियित्वा ध्यातव्या। प्रस्य मन्त्र : ॐ ऐ श्री चक्र चक्रभीमे ज्वल २ गरुड पृष्टि समान्ढे ह्रा ही ह ह्रौ ह्र स्वाहा । विद्युद्वीज 'ऐ' तत्त्वानि आमादीनि चेतिजय ।। अथ विधि : पूर्वादिक् 'पासन' 'पद्मासन' प्रभात काल वरद मुद्रा इत्यादि को ज्ञेय । शान्ति कर्मण फल सकल गुण लाभो निधि लाभश्चेति ज्ञेय । यन्त्र न० १ जी . TENAL समे श्री क्रचा ला " आy अ अEPAL ज औ - । "ज / स्वा यत्र के बीच मे बारह भुजी चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति बनाके ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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