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________________ लघुविद्यानुवाद mr इस मन्त्र से हाथ मे पानी लेकर पूजा के बर्तनो की शुद्धि करे, पश्चात् ॐ ह्रीं अर्ह झों झौ वं मं हं सं तं पं झ्वी क्ष्वी हं सः असि आ उ सा समस्त तीर्थ जलेन शुद्ध पात्रे निक्षिप्त पूजाद्रव्यारिण शोधयामि स्वाहा । पूजा के द्रव्यो का शोधन करे । पश्चात् मै अग्नि मण्डल मे पर्यड्डासन से बैठा हुआ हूँ और मेरे चारो ओर हवा से प्रज्वलित अग्नि से यह सप्त धातुमय शरीर जल रहा है, ऐसा चितवन करे । पश्चात् ॐ ॐ ॐ रं रं रं झौ झौ झौ असि आ उ सा दर्भासने उपवेशनं करोमि स्वाहा। यह मन्त्र पढ कर दर्भ के आसन पर बैठे । पश्चात्ॐ ह्री ओं को दर्भेराच्छादनं करोमि स्वाहा । ॐ ह्री अर्ह भगवतो जिनभास्करस्य बोधसहस्त्र किरणैर्ममनोकर्मेधनद्रव्यं शोषयामि घे घे स्वाहा । नोकर्म शोषणम् । यह पढ कर ऐसा विचार करे कि मेरे कर्म शोषण हो रहे है । पश्चात् ॐ ह्रां ह्री ह ह्रौ ह्रः ॐ ॐ ॐ रं रं रं हh ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल संदह सदह कर्ममल दह दह दुख पच पच पापं हन हन ह फट घे घे स्वाहा । इति कर्म दहन ध्यानम् । इस को पढ कर विचार करे कि हमारे सर्व कर्म जल गये है। ॐ ह्रीं अर्ह श्री जिनप्रभंजन मम कर्मभस्म विधूननं कुरु कुरु स्वाहा । इस मन्त्र को पढ कर विचार करे कि कर्म जल कर उनकी राख उड गई है। इति भस्मापसरणम् । ॐ पंच ब्रह्ममुद्राग्रन्यस्तगुर्वमृता क्षरैः । क्षरत्सुधौधैः सिंचामि सुधा मंत्रेण मूर्धनि ।। अब यहाँ पर पच गुरु मुद्रा बनाकर और उसको मस्तक पर उल्टा रखकर अमत बीज मन्त्र से अपनी शुद्धि करे। निम्नलिखित अमृत मन्त्र से हाथ मे लिये हुए जल को मन्त्रित कर अपने शिर पर डाले ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवपिणि अमृत स्रावय स्रावय सं स क्ली क्ली ब्लू ब्लू द्रां द्रा द्री द्री द्रावय द्रावय ह स इवी क्ष्वी ह स अ सि प्रा उ सा मम सर्वाङ्ग शुद्धि कुरु कुरु स्वाहा । इति अमृत प्लावनम् ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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