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लघुविद्यानुवाद
जिसने गुरुजनो से उपदेश को प्राप्त किया है, जिसकी तन्द्रा खत्म हो चुकी है और जिसने । को छोड दिया है, जो परिमित भोजन करने वाला है, वही मन्त्रो का पाराधक हो सकता है।
निजित विषय कषायोधर्मामृत जनित हर्षगत कायः ।
गुरुतर गुरण सम्पूर्णः समवेदाराधको देव्याः (मन्त्रा) । जिसने सम्पूर्ण विषय कपायो को जीत लिया है, धर्मामृत का सेवन करने से जिसकी काय हर्पयुक्त है, उत्तम गुणो से सयुक्त है, ऐसा पुरुष ही मन्त्राराधन कर सकता है।
शुचिः प्रसन्नो गुरुदेव भक्तो दृढ़ व्रतः सत्य दया समेतः ।
दक्ष पटुर्बीज पदावधारी मन्त्री भवेदीदृश एव लोके ।। जिसका बाह्य और अभ्यन्तर से चित्त शुद्ध है, प्रसन्न है, देव शास्त्र गुरु का भक्त है, व्रतो को दृढता से पालन करने वाला है, सत्य बोलने वाला है, दया से युक्त है, चतुर है, मन्त्रो के बीज रूप पदो को धारण करने वाला है ऐसा व्यक्ति ही लोक मे मन्त्राराधन कर सकता है।
एते गुरणा यस्य न सन्ति पुंस क्वचित् कदाचिन्न भवेत् स मंत्री ।
करोति चेहर्प वशात् स जाप्यं प्रात्नोत्यनर्थफरिणशेखरायाः ।। उपरोक्त गुणो से जो पुरुष युक्त नही है, वह मन्त्रसाधन का अधिकारी किसी भी हालात मे नही होता है। अगर अभिमान से सयुक्त होकर मन्त्रसाधन कोई करता है तो वह मन्त्रो के अधिष्ठाता देवो के द्वारा अनर्थ को प्राप्त होता है। ऐसी श्री मल्लिषेणाचार्य की आज्ञा है।
अथ स्कलीकरणम् :
दृष्टे मृष्टे भुवि न्यस्ते, सन्निविष्टः सु विष्टरे ।
समीपस्थापना द्रव्यो, मौनमामिकं दधे ।। ॐ क्ष्वी भः शुद्धयतु स्वाहा । ॐ ह्री अह म ठ आसन निक्षिपामि स्वाहा । ॐ ह्री ह्यह्य णिसिहि रिणसिहि आसलम् उपविशामि स्वाहा । ॐ ह्री मौन स्थिताय मौनव्रत गृण्हामि स्वाहा।
शोधये सर्वपात्रारिण, पूजार्थानपि वारिभिः ।
समाहितो यथाम्नायं, करोमि सकलीक्रियाम् ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्र. ह्रौ ह्रः नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पवित्रतर जलेन पात्रशुद्धि करोमि स्वाहा ।