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________________ ५१२ मंत्र साधन व फल : षोडशं काव्यस्य क्यूँ बीजं श्रीं शक्ति, पंचविशति मन्त्राक्षरे । ॐ नमो भगवते धरणेंद्र पद्मावति सहिताय ह्रीं श्रीं वां व्री क्षां क्षीं प्रों ह्रीं नमः । श्रनेन मन्त्रेण श्रष्टादश सहस्त्रेन १८००० जाप्यं कृत्वा श्वेत पुष्प, श्वेत सिद्धार्थ, व नारिकेल संयुक्त दिने होम कृत्वा, तत्मंत्र सिद्धिर्भवति, तस्य प्रभावेन, वंध्या पुत्रवति भवति, नव प्रकारेन् वहिभयं न भवति । श्लोक नं. १६ विधि नं. ३ यंत्र नं. १ ऋ ऊ ऋ हृ ॐ ह्रीं Faves Kawy Faves have लघुविद्यानुवाद 衬踢 हृ आँ ए Korch ॐ ह्रीं क्रॉ ॐ ह्रीं न् यू (kosh 跨 ओ ओ अं भल्यै हल् ल्यू छल्लूँ भयनिवारक यन्त्र इस यन्त्र को मुगन्धित द्रव्य से लिखकर ग्रष्ट द्रव्य से पूजा करे । श्रथवा सोना, चादी व ताँबा के ऊपर ख़ुदवाकर ग्रप्टद्रव्य मे पूजा करे तो दुर्बुद्धि का नाश होता है और परकृत
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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