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________________ लघुविद्यानुवाद ४१८ विधि :-इस यन्त्र को भोजपत्र पर सुगधित द्रव्य से लिखकर ॐ ह्री नम । इस मन्त्र का सात लाख विधि पूर्वक जपे तो कार्य सिद्ध होता है । मनवाच्छित फल की प्राप्ति होती है। (२) ह्रीकार मे देवदत्त गर्मितकर ऊपर अष्टदल कमल बनावे उस कमल की पाखुडी मे प्रत्येक मे ह्री बीज की स्थापना करे । ये यन्त्र रचना हुई। यन्त्र न २ देखे । विधि :-इस यन्त्र को भोजपत्र पर केशर गोरोचनादि सुगधित द्रव्यो से लिखकर हाथ मे बांधने से सर्वजन प्रिय होता है और और सौभाग्य की वृद्धि होती है, बाल रक्षा होती है । मन्त्र .--ॐ नमो भगवती पद्मावति (सूक्ष्मपद्म धारिणो) सूलधारिणी पद्म संस्थिता देवि प्रचंडदौर्दड खडित रिपु चक्र किन्नर कि पुरुष गरुड गंधर्व यक्ष राक्षस भूतप्रेत पिशाच महोरग सिद्धी नाग मनुज पूजिते विद्याधर सेविते ह्रीं ह्री पद्मावती स्वाहा ॥१॥ विधि - इस मन्त्र से सरसो २१ वार मन्त्रीत कर वाम हाथ मे बाधने से सर्व ज्वर का नाश होता __ है और भत, शाकिनी ज्वर का नाश होता है । मन्त्र जाप्य दस हजार करना चाहिये। पूर्व द्वार बधामि उत्तर द्वार बधामि आग्नेय द्वार बधामि ईशान द्वार बधामि दक्षिण द्वार बधामि अधो द्वार वधामि नैऋत्य द्वार बधामि ऊर्द्ध द्वार बधामि पश्चिम द्वार बधामि वझ द्वार बधामि वायव्य द्वार बधामि सर्व ग्रह (ग्रहान) बघामि मन्त्र :-ॐ नमो भगवती पद्मावती अक्षि कुक्षि मंडिणी उवज्जयं त वासिनी प्रात्मरक्षा पररक्षा, भूतरक्षा पिशाचरक्षा, शाकिनी रक्षा चोर बांधामिय ॐ ठः ठः स्वाहा। सर्व कर्म करने वाली विद्या, सर्व ज्वरो का नाश करने वाली है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं ह्रीं ज्वों ज्वी (क्ली) (क्ली) ला नानोप लक्ष्मी श्री पद्मावती आगच्छ २ स्वाहा। (नोट) :-इस मन्त्र के अन्दर दो प्रतियो मे दो पाठ मिलते है मूल सस्कृत प्रति मे ज्वला इवी है, आगे ला, ज्वा, प लक्ष्मी है । एक प्रति मे, ज्वी क्ली क्ली ना नोप लक्ष्मी है। किन्तु मल पाठ ऐसा होना चाहिये । ॐ ह्री ही झ्वी क्ली ना नोप लक्ष्मी श्री पद्मावती आगच्छ २ स्वाहा।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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