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________________ ४०० लघुविद्यानुवाद महायन्त्र का पूजा विधान महायन्त्र का और जिन मूर्ति का पचामृताभिषेक करके, महायन्त्र की पूजा, अष्ट द्रव्य से करे। पूजा मन्त्र :-ॐ ह्रा ह्री ह्र ह्रौ ह्र असि पाउसा जल चन्दन आदि । अष्ट द्रव्य से क्रमश चढावे । फिर क्रमश अर्हतसिद्ध, आचार्य, उपाध्याय साधु दर्शन ज्ञान चारित्र का अर्घ चढावे । फिर द्वितीय वलय की जयादि देवियो का अर्ध चढावे, फिर १६ विद्या देवियो का अर्घ चढावे, फिर चौबीस यक्षिणियो की अर्घ से पूजा करे, फिर बत्तीस इन्द्रो की पूजा करे, फिर चौबीस यक्षो की पूजा करे, फिर दश दिक्पाल की पूजा करे। फिर नवग्रह और फिर अनावृत यक्ष को पूजा करे । सबके पहले ॐ ह्री लगाना चाहिये । इस प्रकार महायन्त्र की पूजा करके फिर मूलमन्त्र का १०८ बार जाप जपने से कार्य सिद्ध होता है। प्रत्येक कर्म मे जो विधि लिखी है उसी विधि के अनुसार साधन करे तो ही कार्य सिद्ध होता है। लेकिन ध्यान रखे कि साधन करने से पहले महायन्त्र की पूजा करना परम आवश्यक है। || इति ।। जो जैसा हो उसे वैसा ही जानना ज्ञान है और जो जैसा हो उसे वैसा न में जानना, अन्यथा जानना या बिल्कुल न जानना अज्ञान है । जो ज्ञान हमारे उपयोग से मे आये वह सार्थक ज्ञान है, जो उपयोग में न आये वह निष्फल ज्ञान है । हमारे - दैनिक जीवन मे हम जो भी काम करते है पदार्थो का उपयोग करते है और सोच में विचार करते है वे सफल सार्थक और श्रेष्ठ तभी होगे जब वे ज्ञान के अनुसार किये जाएँ, अज्ञान के अनुसार नही । ज्ञान प्रकाश है अज्ञान अन्धकार है । ज्ञान से मुक्ति है अज्ञान बन्धन है । ज्ञान विकास है अज्ञान अवरोध है । ज्ञान उत्थान है , अज्ञान पतन है । अतः हमे दैनिक जीवन मे उपयोगी और आवश्यक ज्ञान प्राप्त में करने के लिए सदैव प्रयत्नशील और तत्पर रहना चाहिए ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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