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________________ लघुविद्यानुवाद ३०१ लाभ, सम्मान, यश राज्य मान्यता, कोर्ट मे विजय होती है। कुष्ठ, ज्वर, वायु रोग भी इस यन्त्र को धो कर पिलाने से नष्ट हो जाता है, सर्प का जहर उतर जाता है । एक वर्ण की गाय के दूध से यन्त्र का प्रक्षालन कर पिलाने से बध्या गर्भ धारण करती है। जय माला सोना, चादी, प्रवाल रेशमी, सूत अथवा लीला, सफेद, रगनी रखना। शुभ चन्द्र मे मूल मन्त्र की छ मास मे सवा लाख जाप करना चाहिए । यथा शक्ति ब्रह्मचर्य पालना । जाप पूर्ण होने पर प्रतिदिन ६-१०८,२७ या १०८ बार जप करना । यथा शक्ति सप्त क्षत्रो मे पूजन आदि मे द्रव्य खर्च करना । पाचो गाथाओ का १०८ बार प्रतिदिन जाप करने से सर्व कार्यो की सिद्धि, सर्व रोगो का नाश, सुख सपति की प्राप्ति होती है ।।५५-५६।। यन्त्र ५६ का ॐनमो भी हो श्री ॐहां प्रोक्लानाशखर श्वरपार्श्वनाथाय नमः विषहरफुल्लिगमत उव सगारंपास। भवतु elbl भगलकल्लामाआवास NNY AIDDH चौबीस तीर्थकरों का यन्त्र इस यन्त्र को सुवर्ण या चादी के पतडे पर बनावे रविपुष्य नक्षत्र मे। यन्त्र में दिये हुए अको के समान उन २ भगवान को नमस्कार करे । यन्त्र मे लिखे यन्त्र का प्रात. कम से कम पाच माला जपे । घर मे घर मे अटूट धन, घर मे शान्ति रहती है ।।५७।।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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