SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ १५ १६ २२ ३ W ל ८ १४ २० २१ २ लघुविद्यानुवाद यन्त्र न २८ १ ७ १३ १ २५ २४ ५ ६ १२ १८ १७ २३ ४ १० ११ उज्ज्वल बनाना चाहते है उन पुरुषो को इस यन्त्र की आराधना करनी चाहिये । दूसरा चौबीस जिन पेसठिया यन्त्र || २६॥ पंचा षष्टि यन्त्र गर्भित ॥ २६ ॥ श्री चतुर्विशित जिन स्त्रोत्रम् | आदि नेमि जिन नौमी सभव सुविध तथा, धर्म नाथ महादेव शांति शांति कर सदा ||१|| अनते सुव्रत भक्तया नमि नाथ जिनोत्तमम् । अजित जित कन्दर्प चन्द्र चन्द्र समप्रभम् ।।२।। श्रादिनाथ तथा देव सुपार्श्व विमलजिन । मल्लि नाथ गुणोपेत धनुषा पञ्च विशतिम् ॥३॥ अरनाथ महावीर् सुमति च जगद गुरूम् श्री पद्म प्रभ भान । वासुपूज्य सुरैर्नतम् ॥४॥ शीतल शीतल लोके श्र ेयास श्रयसेसदा । कुन्थु नाथ चवामेयं श्री अभिनन्दन जिनम् ॥५॥ जिनाना नामभिर्वद्ध पचषष्टि समुद्भवा । यन्त्रो ऽय राजते लोके श्रेयास यत्र तत्र सोख्यम् निरन्तरम् ||२६|| यस्मिन गृहे महा भक्तया यन्त्रो ऽय पूज्यते बुधै । भूतप्रेतपिशाचादि भय तत्र न विद्यते ॥ ७॥ सकल गुण निधान यन्त्र मेन विशुद्धम् । हृदय कमल कोषे घी मता ध्येय रूपम् । जयतिलक गुरूरूं श्री सूर राजस्थ शिष्यो वदति सुख निदान | मोक्ष लक्ष्मी निवासम् |15|| दूसरे पेसठिये यन्त्र की स्थापना ॥२६॥ इस यन्त्र का जो स्रोत्र पाठ श्लोक का बताया उसका पाठ करते समय जिन तीर्थंकर का नाम आवे
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy