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________________ जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे जो ग्रन्थालयो मे पडे है उनके जीर्णोद्धार करने की आपकी भावना सदैव बनी रहती है और इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये आपने अनेक ग्रन्थो की टीकाये की और उनका प्रकाशन भी हुआ। साथ ही उन ग्रथो का स्वाध्याय कर अनेको भव्यजीव लाभ उठा रहे है। गणधराचार्य महाराज के ज्ञान, ध्यान, त्याग व तप से प्रभावित होकर माह दिसम्बर ८८ मे आरा बिहार में आयोजित पचकल्याणक महोत्सव के शुभावसर पर आपका अभिनन्दन कर आपको "जिनागम सिद्धान्त महोदधि' के पद से विभुषित कर अभिनन्दन पत्र भेट किया गया। htNTRA (भेट किया गया अभिनन्दन-पत्र समारोह में उपस्थित जनसमुदाय को दिग्दर्शन कराते हुये ग्र थमाला के प्रकाशन सयोजक शान्ति कुमार गगवाल ) यत्र, मत्र, तत्र शास्त्रो का पूर्ण जीर्णोद्धार प्रदान करने के लिये आपने अद्वितीय कार्य किया है वोह सभी के सामने है। आपने लघविद्यानवाद ग्रथ का सकलन कर प्रकाशन करवाया। अ अपवादो के बावजुद भी आपकी यह कृति इतनी लोकप्रिय रही कि हम इसे श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रथमाला समिति, जयपुर (राज.) से पुन प्रकाशित करवा रहे है। अत मे हमारी यही भावना है कि परमपज्य श्री १०८ गणधराचार्य कू थु सागरजी महाराज इस भारत भूमि पर चिरकाल तक विहार कर रत्नत्रय की वद्धिकर धर्म प्रभावना करते रहे। प्रकाशन सयोजक
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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