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________________ १७८ लघुविद्यानुवाद विधि -औषधादि मन्त्रण मन्त्र । मन्त्र :- ॐ ह्री धरणेन्द्र पार्श्वनाथाय नमः निधि दर्शनं कुरु कुरु स्वाहा । विधि -जप मन्त्र अस्य तु मत्रस्य जपात् हस्त नेत्रयो स्पर्थ्य मन्त्र निधिस्तभन प्राप्त्वा दर्शन कार्य नेत्राभ्या स्पष्ट भवति दर्शनम् । मन्त्र -ॐ नमो ह्री जय जय परमेश्वरी अम्बिके पान हस्ते महासिंह यान स्थितेकिकरणी नूपुरा क्वाणकेयूर हारागदानेक सद्भ पण भूपितागे जिनेन्द्रस्य भवते कले निष्फले निर्मले नि प्रपचे महोगनने सिद्ध गधर्व विद्याधरे रचिते मन्त्र रूपे शिवे शकरे सिद्धि वुद्धि धृति कीति बुद्धि स्थिते शान्ति धृति, कीति, काति वि स्तारिणी, पुष्टि निधि स्तुष्टि दृष्टि श्रिये शोभने सुख हासे ज्वरे जमिनी स्तभिनी मोहनी, दीपनी, गोपिणी, बासनी, मोटिनी, भजनि, दुष्ट निर्णाशिनी क्षद्र विद्रावणी धर्म सरक्षिणी देवी अम्बे महा विक्रमे भीमनादे सुनादे अधोरे सुघोरे रौद्र रोद्रानने चडिके चडिरुपेसुचक्र सुनेत्रे, सुगात्रे, सुपात्रे तनु मध्यभागे जयति २ पुरध्री कुमारी सुभद्रे पवित्रे सुवर्णे महामल विद्यास्थिते गीरि गाधारी गधर्व जक्षेश्वरी काली २ महाकालि योगीश्वरी जैनमार्ग स्थिते सुप्रशस्ते शस्त्र धनुनाद्र दडाभि चक्रेक वक्राकुशावेक शास्त्रोदिते सृष्टि सहार कातार नागेन्द्र भूतेन्द्र देवेन्द्र स्तुते किन्नरै र्यक्ष रक्षा धिप ज्योतिघे पन्नगेन्द्र. सुरेन्द्राश्चिति वदिते पूजिते सर्व सत्वोतमे सर्व मत्राधिष्ठते ॐ कार वषट्कार ह कार हीकार सुधाकार बीजान्विते दुख दीर्भाग्य निर्णाशिनी रोग विध्वशनी लक्ष्मी धति, कीति कान्ती विस्तारनी सर्व दुगुणेषु निस्तारणी दुस्तरोत्तारणी ॐ क्रौ ही नमो यक्षिणी ह्री महादेवी कुष्माडिके ही नमो योगिनी ह. सदा सर्व सिद्धि प्रदे रक्ष मा देवी अम्बे अम्बे विवादे रणे कानने शत्रु मध्ये समुद्र प्रवेशागमे गिरौ कृष्ण रात्री घने सध्याकाले निहस्त निरस्त निहीन निशान्त प्रशन प्रनष्ट प्रष्ट ग्रहै र्यक्ष रक्षो रुगै दैत्यभत पिशाचै ग्रहीत ज्वरेणाभिभूत गव्याध्रिसिहै निरुद्ध व्याल वेताल ग्रस्त खगेन्द्रण नीत कृ तातै न ग्रस्त मत चापि सरक्ष मा देवी अम्बालये त्वत्प्रसादात् शान्तिक पौष्टिक वश्यमाकर्षणोच्चाटन स्तभन मोहन दीपन चैव एतन्यहा ताडक एतानि सर्व कार्याणि सिद्धि नयति सक्षेपत सर्वरोगा प्रणश्यन्ति । न सशय भवेदिह ॐह फट् स्वाहा इति । "पाम्र कृष्माडिनी मालामन्त्र । ॐ ह्री कूष्माडिनी कनक प्रभेसिह मस्तक समारुदे जिनधर्म सुवत्सले महादेवी मम चितित कार्य शुभाशुभ कथय-कथय अमोघ वागीश्वरी सत्यवादिनी सत्य दर्शय-दशय स्वाहा।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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