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________________ लघुविद्यानुवाद १४६ विधि :-इस मन्त्र से शीशा, दीप, तलवार, छुरी, लकडी, जल, दीवाल आदि मन्त्रित करके दोषी को दिखाने से जैसा का तैसा कह देता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवति अप्रति चक्रे जगत्संमोहन कारि सिद्ध सिद्धार्थे क्ली क्लिन्ने मदद्रवे सर्व कामार्थ साधिनी प्रां इं ऊ हितकरी यसस्करी प्रभंकरी मनोहरी वशंकरी शूह, सम्द्र कद्रां द्रीं अप्रति चक्र फट विचनाय स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र का सतत् जप करने से तीनो लोको के लोग क्षुभित होते है। परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है। राजकुल की स्त्रियो को देखकर जपने से नित्य ही दास भाव से व्यवहार करती है । इन तीनो हो कार्य के लिये पहले लाल कनेर के फूलो से १००० जाप करे सर्व कार्य सिद्ध होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रां ह्रीं ह्र हः यः क्षः २ ही फट फट २ स्वाहा । विधि . ;-मन्त्राधि राजमन्त्र :-पहले उपवास करे, फिर सायकाल मे दूध पीकर सवेरे, काले चनो को खाकर मुष्टीप्रमाण क्रु न्षक जटा षष्टिक को चावल का धोया हुआ पानी या चावल मॉड को पीसकर पिलाने से मारी रोग की निवृत्ति होती है। मन्त्र -ॐ ह्रीं चंद्रमुखि दुष्ट व्यंतर कृतं रोगोपद्रवं नाशय नाशय ह्रीं स्वाहा । विधि -वासा श्वेताक्षता अभिमत्र्य गृहादौक्षेप्या दुष्ट व्यतर कृत रोगो नश्यति । . अब भत तंत्र विधान को कहते हैं । (श्रीमद पूज्य पादाचार्य कृत) । प्राणिपत्य युगादि पुरुषं, केवल ज्ञानं भास्करं, भूत तन्त्र प्रवक्ष्यमि यथावदनु पूर्वशः ॥१॥ अर्थ –श्री आदिश्वर प्रभु को नमस्कार करता हू जिनको कि केवल ज्ञान रूपी सूर्य का उदय हुआ है। ऐसे आदि पुरुष को नमस्कार करके भूत तन्त्र को कहू गा' जैसे कि पहले पर्वाचार्यो ने कहा है। तत्र :-श्र चि विद्या ल कृतो मन्त्री पचाग वद्ध परिकर. साधयेद्भ वन कृष्ण किं पुन मनुजेश्वरान् ॥२॥ अर्थ :-सर्व विद्या से अलकृत साधक सकलीकरण पूर्वक पच अग का रक्षण करता हुआ साधन करे तो तीनो लोको को साधने वाला होता है तो फिर मनुष्यो के राजा की तो वात
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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