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________________ लघुविद्यानुवाद ११७ सम ज्वरं दुष्ट ज्वर विनाशय २ सर्व दुष्टान्नाशय २ ॐ ७ र ७ ह्रो स्वाहा २ य. ३ । विधि :-इस मन्त्र को अष्टमी अथवा चतर्दशि को उपवास करके १०८ बार जपने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। और यह मन्त्र सर्व कार्य के लिए काम देता है। मन्त्र :-ॐ झांझी झो झः। विधि :-इस मन्त्र से डोरा रगीन वड करके २१ बार मन्त्रित करके हाथ मे बाधने से तृतीय ज्वर का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं अप्रति चक्र फट विचनाय स्वाहा । (सर्व कर्म झरा मन्त्र) विधि -विशेषत शाकिनी गृह तस्य सर्षापान् गृहीत्वा शाकिन्या कर्षयेत् । एकैक सर्षपं सप्ताभिमन्त्रीत कृत्वा जलभृत कटोरक मध्ये क्षिपेत् ये तरति ते शाकिन्यः समेन शाकिन्यः विषमेण भूत अथ न तदा भूत शाकिनी मध्याद् एकोपि ना अनेन मन्त्रेण सप्ताभि मन्त्रीत कृत्वा उदुषल ताडयेत् यथा २ ताडयेत् तथा २ आक्रदति । एतेन् चोवर सप्ताभि मत्रित कृत्वा उद्धी कृत्य स्फोटयेत् रुपिष्यो नश्यति अनेन् मन्त्रेण यूग्मगहीत्वा सप्ताभि मन्त्रीता क्रित्वा उद्वीकृत्य स्फोटयेत रुपिण्यो नश्यति । अनेन मन्त्रेण अजा लिडि कामे काकी विध्यात् शाकिन्या गृहीतस्य खट्वाध शराव स पुट धारयेत् शाकिन्यो नश्यति रक्षा वधयेत् । मन्त्र :-ॐ क्रां क्रों को क्षः हः रः फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को सरसो लेकर पढता जावे और रोगी के उपर सरसो डालता जावे तो भूतादिक रोगी को छोडकर निश्चित ही भाग जाते है। मन्त्र :-ॐ चन्द्र मीलि सूर्य मीलि स्वाहा । विधि - इस मन्त्र से डोरे को २१ बार मन्त्रित करके जिसकी आख (चक्षु) दु खती हो उस मनुष्य के कान मे उस डोरे को बाधने से चक्षु रोग पीडा नष्ट होती है। मन्त्र :- ॐ नमो आर्या व लोकिते स्वराय पझे फुः पद्म वदने फुः पद्म लोचने स्वाहा। विधि -भस्म वार २१ जपित्वा टिल्लक त्रियतेततो दृष्टि दोषो निवर्त ते हस्तवाहन च । इस मन्त्र से भस्म २१ बार जप कर तिलक करने से दृष्टि दोष याने नजर लगी हो तो ठीक हो जाती है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं अन कुष्मांडिनी कनक प्रभसिंह मस्तक समारुडे अवतर २ अमोघ वागेश्वरी सत्यवादिनी संत्यं कथय २ ॐ ह्री स्वाहा ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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