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________________ ग्रन्थ के संग्रहकर्त्ता परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य वात्सल्य रत्नाकर, श्रमरणरत्न, स्याद्वाद केशरी, बादिभ सूरी, जिनागम सिद्धान्त महोदधि कुन्थु सागरजी महाराज के प्रकाशित ग्रन्थ के बारे में विचार एवं मंगलमय शुभाशीर्वाद 卐 5 बहुत प्रशन्नता की बात है कि हमारे द्वारा संकलित सर्वजन प्रिय लघुविद्यानुवादग्र प्रकाशन पूर्ण सशोधन के बाद (द्वितीय संस्करण) के रूप मे श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रंथमाला समिति जयपुर (राज) के द्वारा हो रहा है । यह ग्रथ अपने आप में एक ही है । जिसको दिगम्बर श्वेताम्बर जैन प्रजैन आदि सभी सम्प्रदाय के लोगो ने पसन्द किया । लघुविद्यानुवाद ग्रंथ के प्रकाशन से मेरे को बहुत ही प्रसिद्धि प्राप्त हुयी । क्योकि इस ग्रथ के प्रकाशन से पूर्व शायद इतने लोग मुझे नही जानते थे । इस ग्रथ के प्रकाशन का प्रचार-प्रसार हमारे यत्र मंत्र के विरोधी भाई बहिनो ने तो इतना किया कि अल्प समय ' ही इस ग्रथ की सभी प्रकाशित प्रतियाँ समाप्त हो गयी । और अनेको पत्र ग्र थमाला के सयोजकजी को ग्रंथ के मंगवाने के लिये प्रतिदिन प्राप्त हो रहे है । इसलिये यत्र, मंत्र मे विश्वास रखने वाले को भाई बहिनो के विशेष आग्रह को ध्यान मे रखकर विवादास्पद सामग्री को निकालकर उनके लाभार्थ इस ग्रंथ का पुन प्रकाशन करवाया गया है। पूर्व मे मैंने इस ग्रंथ का सकलन मात्र दिगम्बर जैनियो के अवलोकनार्थ किया था। क्योंकि दिगम्बर परम्परा मेभी सभी प्रकार के यत्र, मत्र तत्रो को स्थान दिया है। पूर्व परम्परा मे जैसे
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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