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________________ लघुविद्यानुवाद वर्तमान की बात को देव कान मे आकर कहेगा, याने जो पूछोगे वही कान मे आकर कहेगा। मन्त्र -ॐ ह्री ला ह्रा प लक्ष्मी हस' स्वाहा । विधि .-इस मत्र का दस हजार जाप जाइ के फूलो से करने से और दशाश होम करने से मन्त्र सिद्ध हो जायेगा । मन्त्र के प्रभाव से स्थावर या जगम विष की शक्ति का नाश होता है। मन्त्र -ॐ ऐ ह्री श्री क्ली ब्लू कलिकुण्ड नाथाय सौ ह्री नम । विधि -इस मन्त्र का ६ महीने तक एकासनपूर्वक १०८ बार जाप करे तो सौ योजम तक के पदार्थ का ज्ञान होता है और उसके बारे मे भूत, भविष्यत्, वर्तमान का हाल मालूम पडता है। इस मन्त्र का कलिकुण्ड यन्त्र के सामने बैठकर जाइ के पुष्पो से १ लाख बार जाप करे और दशाग होम करे, मन्त्र सिद्ध हो जायेगा। विशेष -पाच वर्ष तक ब्रह्मचर्यपूर्वक इस विद्या की जो आराधना करता है उसको प्रतिदिन विद्या के द्वारा १ पल भर सोना नित्य ही प्राप्त होता है। किन्तु नित्य ही जितना सोना मिले उतना खर्च कर देना चाहिए। अगर खर्च करके सचय करोगे तो विद्या का महत्व घट जावेगा। मन्त्र १ -ॐ हुँ २ हे २ . चूँ, तूंपूँ — यूँ ह्रां ह्र (झॉ हूँ) फट् । विधि -इस मन्त्र का एक लाख जाप करने से कार्य सिद्ध होता है। इस मन्त्र के प्रभाव से राज दरबार मे, कचेरी मे, वाद-विवाद मे, उपदेश के समय पर विद्या का छेदन करने मे, वशीकरण मे, विद्वषणादि कर्मो मे, धर्म-प्रभावना के कार्यो मे अति उत्तम कार्य करने से फल की प्राप्ति होती है। पद्मावती प्रत्यक्ष मन्त्र.२ -ॐा को ही ऐ क्ली हौ पद्मावत्यै नम । विधि :-सवा लाख जाप करने से प्रत्यक्ष दशन होते है या साढे बारह हजार जप करने से स्वप्न मे दर्शन होते है। सरस्वती मन्त्र ३ -"ॐ ऐ श्री क्ली वद् वद् वाग्वादिनी ह्री सरस्वत्यै नम ।" विधि -ब्राह्ममुहूर्त मे रोज ५ माला जपने से बुद्धिमान होय । ॐ ज्रौ नौ शुद्ध बुद्धि प्रदेहि श्रुत-देवी-महंत तुभ्य नम । लक्ष्मी प्राप्ति मन्त्र ४ :-"ॐ ह्री श्री क्ली ठौ। ॐ घटा कर्ण महावीर लक्ष्मी पुरय पुरय सुख सौभाग्य कुरु कुरु स्वाहा। विधि -धन तेरस को ४० माला, चौदस को ४२ और दोवाली के दिन ४३ माला उत्तर दिशा मे मुख करके, लाल माला से, लाल वस्त्र पहन कर जाप करे, लक्ष्मी की प्राप्ति होय । श्रीमणिभद्र क्षेत्रपाल का मन्त्र ५ -ॐ नमो भगवते मणिभद्राय क्षेत्रपालाय कृष्णरुपाय चतुर्भुजाय जिन शासन भक्ताय नव नाग सहस्त्र वात्नाय किन्नर कि पुरुष गधर्व, राक्षष, भूत-प्रेत, पिशाच सर्व शाकिनी ना निग्रह कुरु कुरु स्वाहा माँ रक्ष रक्ष स्वाहा ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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