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________________ लघुविद्यानुवाद परिवार बढे, बुद्धि बढे, सौभाग्य बढे जहाँ जावे वहाँ आदर-सम्मान पावे । मूठ करे तो भी नजदीक न आवे । जाप करे जितने वार धूप खेवे, पद्मासन होकर, नासाग्र दृष्टि लगाकर जाप करना चाहिये। शांति मन्त्र ॐ गमो अरहंताणं, केवलिपणतो धम्मो, सरणं पव्वजामि ह्रौ शाति कुरु कुरु स्वाहा । श्री अर्ह नमः। (१) बिजौरा या नारियल १०८ बार इस मत्र से मन्त्रितकर ७२ दिनो तक वध्या (बाझ) को खिलावे तो पुत्र हो। (२) नये कपडे, मन्त्र से मन्त्रितकर रोगी को पहनावे तो दोष ज्वर जाय । ___ॐ सिद्धभ्यो बुद्ध भ्यो सिद्धिदायकेभ्यो नमः । विधि -जाप १०८ अष्टमी, चतुर्दशी को पढकर धूप देना।। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, णमो अरहताणं, णमो प्राचार्याणं, णमो उवज्झायाणं, णमो साहूणं, णमो धर्मेभ्यो नम. । ॐ ह्री णमो अरहंताण पारे अभिनि मोहनो मोह्य मोह्य स्वाहा । विधि -नित्य १०८ बार जपे। ग्राम प्रवेशे ककर ७ मन्त्र २१ क्षीर वक्ष हन्यते लाभो भवति । प्रथम मत्र जप दीप-धूप से सिद्ध करना, छे अपने काम मे लगना चाहिये । सर्व शान्ति मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौ ह्रः अ-सि-पा-उ-सा सर्व शांति तुष्टि पुष्टि कुरु कुरु स्वाहा । ॐ ह्री अर्ह नमः । क्लीं सर्वारोग्यं कुरु कुरु स्वापा । विधि :-१०८ बार जाप गुरुवार से प्रारम्भ करे पूर्व दिशा को मुख करके बैठे। धूप से प्रारम्भ कर ११,००० जाप करे। मन्त्र -ॐ ह्री असि प्रा उ साह्री नम । विधि :- इस मन्त्र का त्रिकाल १०८-१०८ बार जाइ के फूलो से जप करे तो सर्व प्रकार की अर्थ सिद्धि को देता है। मन्त्र -ॐ क्ली ही हहौऐ ही (हाँ?) हा अपराजितायै नम । विधि -इस मन्त्र का ३ लक्ष जाप विधिपूर्वक करने से मन्त्र सिद्ध होता है। इस मन्त्र के प्रभाव से साधक जो भी भोगोपभोग चीजो की इच्छा करता है वह सब साधक को प्राप्त होती है। स्त्री आदि तो अपना होश ही भूलकर साधक के पीछे-पाछे चलती है।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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