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________________ लघुविद्यानुवाद ॐ णमो उवज्झायाणं ह्रौ स्वाहा । ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं ह्रः स्वाहा । विधि :-सुगन्धित फूलो से १०८ बार जाप कर लाल कपडे से फोडा-फुन्सी पर घेरा देने से तथा गले मे पहनने से फोडा न पक कर बैठ जाता है। ॐ वार सुवरे प्र-सि-पा-उ-सा नमः । विधि -त्रिकाल १०८ बार जपने से विभव करता है । जाप्य-मन्त्र पावश्यक नोट -माला के ऊपर जो तोन दाने होते है, सबसे अन्तिम जो इन तीनो मे से है उससे जप आरम्भ करो। जपते हुए अन्दर चले जाओ। जब सारे १०८ जप कर चुको तब उन आखिर के तीन दानो को माला के अन्त मे भी जपते हए उसी पाखिर के दाने पर प्रायो। जिससे माला जपनी शुरू की थी। यह एक माला हुई। इन तीनों दानो के बारे मे किसी प्राचार्य का मत ऐसा भी है कि ये तीन दाने रत्नत्रय के सूचक है इसलिए इन तीनो दानो पर 'सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्रायनम' ऐसा मन्त्र पढकर माला समाप्त (पूर्ण) करनी चाहिए। प्रथम मन्त्र -ॐ णमो अरहताण, णमोसिद्धाण, णमो पायरियाण, णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण। दूसरा मन्त्र -अरहत सिद्ध पायरिया उवज्झाया साहू। तोसरा मन्त्र-अरहत सिद्ध । चौथा मन्त्र-ॐ ह्री अ-सि-पा-उ-सा। पांचवां मन्त्र-ॐ नम सिद्धेभ्यः । छठा मन्त्र-ॐ ह्री। सातवाँ मन्त्र-ॐ। अनादि निधन मन्त्र-ॐ णमो अरहताण, णमो सिद्धाण, रणमी पायरियारण, मी उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण । चत्तारि मंगल-अरहता मगल, सिद्धा मगल, साह मगल, केवलि पण्णतो धम्मो मगल । चत्तारि लोगुत्तमा-अरहता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णतो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारि सरण पव्वजामि-अरहते सरण पवजामि, सिद्धे सरण पव्वजामि, साहूँ सरण पवज्जामि, केवलि पण्णत्त धम्म सरण पव्वजामि । ह्रौ सर्व शान्ति कुरु कुरु स्वाहा ।
SR No.090264
Book TitleLaghu Vidyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLallulal Jain Godha
PublisherKunthu Vijay Granthamala Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages693
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size28 MB
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