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________________ ६६ ] लब्धिसार [ गाया १०८-१०६ में नियम नहीं है, किन्तु दोनों ही उपयोगों के साथ सम्यग्मिथ्यात्व गुण को प्राप्त होता है'। जो जीव सम्यग्दृष्टि होकर और आगामी आयु को बांधकर सम्यग्मिथ्यात्व भाव को प्राप्त होता है वह सम्यक्त्व के साथ ही मरण को प्राप्त होकर उस गति से निकलता है। अथवा जो मिथ्यादृष्टि होकर और आगामी आयु का बंध करके सम्यग्मिथ्यात्वभाव को प्राप्त होता है वह मिथ्यात्व के साथ ही मरण को प्राप्त हो उस गतिसे निकलता है । सम्यग्मिथ्यात्व में मरण नहीं है और आयु बन्ध भी नहीं है । अब मिथ्यात्वप्रकृति के उदयका कार्य को गाथाओंमें कहते हैं"मिच्छत्तं वेदंतो जीवो बिवरीयदंसणं होदि । ण य धम्मं रोचेदि हु महुरं खु रसं जहा जुरिदो ॥१०॥ "मिच्छाइट्ठी जीवो' उवइट्ठ पवयणं ण सद्दादि । सदहदि असभा उइट्ट या अणुवइ ॥१०॥ अर्थ-मिथ्यात्व का वेदन करनेवाला जीव विपरीत श्रद्धानवाला होता है। जैसे ज्वर से पीड़ित मनुष्य को मधुर रस नहीं रुचता है वैसे ही मिथ्यादृष्टि को धर्म नहीं रुचता। मिथ्यादृष्टिजीव नियम से उपदिष्ट प्रवचन का श्रद्धान नहीं करता, उपदिष्ट या अनुपदिष्ट असद्भाव का श्रद्धान करता है। विशेषार्थ- उपर्युक्त गाथा संख्या १०८ जयधवल पु. १२ पृ. ३२३ पर उद्धत गाथा नं. २ के समान है तथा गाथा १०६ कषायपाहुड़ के गाथा १०८ के सदश होने से कषायपाहुड़ गाथा १०८ के अनुसार यहां विशेषार्थ दिया जा रहा है। १. ज. प. पु. १२ पृ. ३२४ । . २. प. पु. ५ पृ ३१ ध. पु. ४ पृ. ३४३ । ३. प. पु.७ पृ ४५८; ध. पु. ४ पृ. ३४३; गो. जी. गाथा २४३ मिश्रगणस्थानमें मारणान्तिक समुद्घात भी नहीं होता है। ४. ज. ध पु १२ पृ ३२३ । ५. ज ध पु. १२ पृ. ३२२ मा १०८ । ६. 'रिणयमा' इति पाठान्तरम् ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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