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________________ १४ ] लब्धिसार [ गाथा १०७ अपेक्षा वह क्षायोपशमिक है। सम्यग्मिथ्यात्व द्रव्यकर्म सर्वघाति होवे, क्योंकि जात्यन्तरभूत सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के संम्यक्त्वंता का अभाव है किन्तु श्रद्धानभाग अश्रद्धान भाग नहीं हो जाता, क्योंकि श्रद्धान और अश्रद्धान के एकता का विरोध है । श्रद्धानभाग कर्मोदयजनित भी नहीं है, क्योंकि इसमें विपरीतता का अभाव है और न उनमें सम्यग्मिथ्यात्व संज्ञा का ही प्रभाव है, क्योंकि समुदाय में प्रवृत्त हुए शब्दों की उनके एक देश में भी प्रवृत्ति देखी जाती है । अतः यह सिद्ध हुआ कि सम्यग्मिथ्यात्व क्षायोपशमिकभाव है'। सम्यग्मिथ्यात्वलब्धि क्षायोपशमिक है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व के उदयसे उत्पन्न होती है। शंका-सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के स्पर्धक सर्वघाति ही होते हैं इसलिये इसके उदयसे उत्पन्न हुआ सम्यग्मिथ्यात्व क्षायोपशमिक कैसे हो सकता है ? समाधान-शका ठीक नहीं है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के स्पर्घकों का उदय सर्वघाति नहीं होता। शंका-यह किस प्रमाण से जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व में सम्यक्त्वरूप अंश की उत्पत्ति अन्यथा बन नहीं सकती। इससे ज्ञात होता है कि सम्यग्मिथ्यात्व कर्मके स्पर्धकों का उदय सर्वघाति नहीं होता। सम्यग्मिथ्यात्व के देशघाति स्पर्धकों के उदयसे और उसी के सर्वघाती स्पर्धकों की उपशम संज्ञावाले उदयाभाव से सम्यग्मिथ्यात्व की उत्पत्ति होती है इसलिये वह तदुभय प्रत्ययिक (क्षायोपशमिक) कहा गया है । सम्यग्मिथ्यात्व की अनुभागउदीरणा सर्वघाति और द्विस्थानीय है । शंका-इसका सर्वघातिपना कैसे है ? "समाधान--मिथ्यात्व की उदीरणा से जिसप्रकार सम्यक्त्वगुण का निर्मल बिनाश होता है उसीप्रकार सम्यग्मिथ्यात्व की उदीरणा से भी सम्यक्त्व संज्ञावाले जीव का निर्मूल विनाश देखा जाता है । १. ध. पु. ५ पृ. १६८-६६ | २. प. पु. १४ पृ. २१ ।। ३. ज.ध. पु ११ पृ. ३८ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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