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लब्धिसार
[ गाथा ७९ प्रमाण स्थितिका अपूर्वकरण-विशुद्धि-निमित्तक सहस्रों स्थितिकांडकोंके द्वारा घात होने पर उसके अन्तिमसमयमें संख्यातवेंभागमात्र ही स्थितिकर्म शेष रहता है । अब अपूर्वकरणके प्रथमसमयसे लेकर चरमसमयतक जितने सागरोपम स्थितियोंका घात हना है वह सब पैराशिकके द्वारा प्राप्त हो जाता है। तत्प्रायोग्य संख्यात संख्या प्रमाण स्थितिकांडकोंका यदि एक पल्योषम प्राप्त होता है तो इनसे संख्यातहजारकोटिगुणे स्थितिवाण्डकोंमें कितने पल्योपमा प्राप्त होंगे? इसप्रकार राशिकसे स्थितिकाण्डक स्थितिकाण्डकके सदृश है अतः उनका अपनयन करके अधस्तन संख्यात संख्यासे उपरितन संख्यात संख्याको भाजित करनेसे जो लब्ध आवे उससे पल्योपमको गुरगा करनेपर स्थितिकाण्डकसम्बन्धी गुणाकारके माहात्म्यसे संख्यातकोडाकोड़ीप्रमाण पल्योपम प्राप्त होते हैं । पुनः इन संख्यातकोड़ाकोड़ी पल्योपमोंको त्रैराशिकविधिसे सागरोपमप्रमागसे करनेपर संख्यातकोटिप्रमाण सागर होते है । इतने होते हुए भी अपूर्वकरणके प्रथमसमय में विवक्षित अन्त:कोड़ाकोड़ीके संख्यातबहुभागप्रमाण होते हैं, ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा अपूर्वकरणके प्रथमसमयसम्बन्धी स्थितिसत्कर्मसे अंतिमसमयका स्थितिसत्कर्म संम्यातगुणाहीन नहीं बन सकता । स्थितिबन्धापसरणके विषय में भी इसीप्रकारकी योजना करनी चाहिए।
अब अनुभागकाण्डकघातका कथन करते हैंएक्केक्कट्ठिदिखंडयणिवणठिदिबंधभोसरणकाले । संखेज्जसहस्साणि य णिवडति रसस्त खंडाणि ॥७९॥
अर्थक स्थितिकाण्डकके पतनकालमें अथवा एक स्थितिबन्धापमरगा काल में संख्यातहजार अनुभागकांडकोंका पतन होता है ।
विशेषार्थ- अपूर्वकरण में प्रथम स्थितिकाण्डकका उत्कीरणकाल और प्रथम स्थितिबन्धका काल अर्थात् स्थितिबन्धापसरणकाल अन्तर्मुहुर्त होकर परस्पर तुल्य होते है। इसीप्रकार द्वितीयादि स्थितिकाण्डकोत्कीरणकाल व स्थितिबन्धापसरण (स्थितिबन्द काल परस्पर तुल्य हैं। एक स्थितिकांडक में हजारों अनुभागकाण्डकोंका घात होता है, क्योंकि स्थितिकांडकोत्कीरणकाल से अनुभाग काण्डकोत्कीरण काल संख्यात
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१. ज ध. पु. १२ पृ. २६९-७० । २. क. पा. सुत्त पृ ६२५ ।