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________________ ( २२ ) शब्द पृष्ठ स्थितिकाण्डककाल स्थितिबंधापसरणकाल ५३ परिभाषा अवस्थित करने को सूक्ष्मसान्परायिक कृष्टिकरण कहते हैं । जघधवल मूल ५० २१९४-९५ तथा का पा० मुत्त पृ०८६२ एक स्थिति काण्डकात में लगने वाला काल स्थितिकाण्डककाल कहलाता है। यह अन्तर्मु हुतंप्रमाण होता है । यह स्थितिकाण्डकोत्कीरण काल भी कहलाता है। एक स्थितिबन्धापसरण काल में लगने वाले फाल को स्थितिबन्धापसरण काल कहते हैं । यह भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होता है। इसे स्थितिबन्धकाल भी कहते हैं। एक स्थिति काण्डकाका काल (यानी स्थितिकाण्डककाल) और स्थितिबंधापसरण का काल परस्पर तुल्य होते हैं । ( ल. सा. गाथा ७६ पृ. ६४, ६५, ७६ क्ष० . पृ. ३४ आदि) स्वस्वरूपसे उदित होते हुए क्षय होना। . विवक्षित कषाय की संग्रह कृष्टि का द्रब्य जब अन्य संग्रह कृष्टि में संत्रमण करता है तो उस विवक्षित कपाय की ही सेप अघस्तनकृष्टियों में संक्रमण करता है यह स्वस्थान संक्रमण है। स्वस्थान में अर्थात् अपनी ही अभ्य संग्रहकृष्टियोंमें । संक्रमण करना, अर्थात् तद्रप परिणाम करना; ऐसा अर्थ है। स्वमुखक्षय स्वस्थान संक्रमण १२०-१३९
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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