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शब्द
पृष्ठ
परिभाषा
पूर्वानुपूर्वी
प्रदेश
घवल १।७४ कहा भी है-विलोमेण परूबरणा पच्छाणुपुटवी पाम । घवल ९६१३५ अर्थात् विलोम क्रम में प्ररूपणा करना पश्चादानुपूर्वी है । (प. ९।१३५ प्रयम पेरा ) जयघवल पुस्तक १ पृ. २५ प्रकरण २२ ( प्रथम गेरा) में भी कहा है कि- उस पदार्थ की विलोम क्रमसे अर्थात् अन्त से लेकर प्रादि तक गणना करना पश्चादानुपूर्वी है। उद्दिष्ट क्रम से अधिकार की प्ररूपरणा का नाम पूर्वानुपूर्वी है । (धवल ९।१३५ प्रथम पेरा । ) जो पदार्थ जिस क्रम से सूत्रकार के द्वारा स्थापित किया गया हो, अथवा जो पदार्थ जिस क्रम से उत्पन्न हुआ हो उसकी उसी क्रम से गणना करना पूर्वानुपूर्वी है । जयघबल १।२५। जो वस्तु का विवेचन मूल से परिपाटी द्वारा किया जाता है उसे पूर्वानुपूर्व कहते हैं । दानदार रण म प्रकार है'ऋषभनाथ की वन्दना करता हूं, अजितनाथ की वन्दना करता हूँ' इत्यादि क्रम से ऋषभनाथ को प्रादि लेकर महावीरस्वामी पर्यन्त क्रम वार वन्दना करना, सो धंदना सम्बन्धी पूर्वानुपूर्वी उपक्रम है । धवल १७४ । (i) जितने क्षेत्र में एक परमाणु रहता है उसका नाम प्रदेश है । 2 स. सि.
५-८; द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र १४०; प्र. सा. ( जय.) २,४५, नियमसार पृ. ३५. अन्य विवक्षा में स्कन्ध के प्राधे के प्राधे भाग को या देश के माघे भाग को प्रदेश कहते हैं । * त० सा० ३१५७; बसुनन्दिनाक १७ गो० जी०, श्री. प्र. ६०४; पं० का० ७५; मूला० ५--३४ ( वट्टकेराचार्य }; भाव
सं० ३०४; गो० जी० ६.४ आदि । (it) परन्तु यहां कर्म शास्त्र में, प्रकृत में प्रदेश शब्द से, परमाणुरूप द्रव्य जानना
चाहिए। लब्धिसार-क्षपणासार में जहां प्रदेश शब्द पाया है, वहां प्राम: "फर्मपरमाणु" अर्थ में ही पाया है। प्रदेश = कर्मपरमाणु । ( देखो
क्षपणासार गा. ४४१ पृ० ४६ आदि पर प्रागत प्रदेश शब्द ] (i) कार्य के विनाश का नाम प्रध्वंसाभाव है । धवल १।२६ (i) दही में जो दूध का अभाव है वह प्रध्वंसाभाव स्वरूप है। जै० ल० ३७६५ (ii) प्रध्वंस अर्थात् कार्य का विघटन नामक धर्म । * नोट-पे दोनों (1) व (i) परिभाषाए परिज्ञान मात्र के लिए दी गई है।
प्रध्वंसाभाव