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क्षपणासार
[ गाथा ३६०-६१
जानना । उससे गिरनेवालेके अपूर्वकरण के चरमसमय में स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है । यद्यपि स्थितिसत्त्वका गण अन्तःकोड़ाकोड़ी हैं तथापि स्थितिबन्धसे संख्यातगुणा है, क्योंकि सम्यग्दृष्टि के सर्वदा स्थितिबंध से स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है ।
तप्पड मट्ठिदिसतं पडिवड अगिय ट्ठच रिम ठिदिसत्तं । अहियकमा चडबादपढमट्ठिदिसत्तयं तु संखगुणं ॥ ३६० ॥
अर्थ -- उसी गिरनेवाले प्रपूर्वकरणका स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है ( ९६ ) । उससे गिरनेवाले अनिवृत्तिकरणका अंतिम स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है ( ६७ ) उससे चढ़नेवाले बादरलोभ प्रर्थात् श्रनिवृत्तिकरणका प्रथम स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है ( ८ ) ।
विशेषार्थ -- उससे गिरनेवाले के प्रपूर्वकरणके प्रथम समय में जो स्थितिसत्त्व है वह एक समयकम अपूर्वकरणके कालप्रमाण अधिक है, क्योंकि उतरने में प्रथम समयवर्ती स्थितिसत्त्वसे अंतिम समयवर्ती स्थितिसत्त्वकी हीनता उतने समयमात्र ही होती है ।' उससे गिरनेवाले अनिवृत्तिकरण के अंतिम समय में स्थितिसत्त्व एकसमय अधिक है । उससे चढ़नेवाले निवृत्तिकरण के प्रथमसमय में स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है, क्योंकि प्रथम समय में अनिवृत्तिकरण के परिणामोंसे स्थितिसत्त्वका खण्ड नहीं होता है । स्थिति - काण्डककी अंतिम फालिके पतन होनेपर स्थितिघात होता है । * ( ६६-६८ )
चडमाण पुव्वस्त य चरिमद्विदिसत्तयं विसेस हियं । तस्सेव य पढमठिदीसत्तं संखेज्जसंगुणियं ॥ ३६१ ॥
अर्थ -- चढ़नेवाले अपूर्वकरणके अंतिम स्थितिसत्त्व विशेषअधिक है ( EC ) 1 उसीका प्रथम स्थितिसत्त्व संख्यातगुरणा है ( १०० ) ।
विशेषार्थ - - उससे चढ़नेवाले अपूर्वकरण के अंतिम समय में स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है, क्योंकि अंतिमकाण्डकको अंतिमफालिका प्रमाण पत्य के संख्यातवें भाग मात्र पाया जाता है, सो इतना अधिक जानना, इससे उसीका प्रथम स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा
१. क्योंकि नीचे उतरते हुए के स्थितिकाण्डकघात तो है नहीं (ज. घ. मूल पृ. १६३७, १६१३ तथा १६२६ आदि ।
२. ज. ध. मूल पृ. १६३७ ॥