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गाथा ३८५] क्षपणासार
[ ३११ है। उससे उतरनेवालेके वहां संख्यातवर्षकी स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (७३-७८)
चडपडण मोहचरिमं पढमं तु तहा तिघादियादीणं । अखेजस्तषोऽसंखजगुणकमो छण् ॥ ३८५ ॥
अर्थः-चढ़नेवालेके मोहनीयकर्मका असंख्यातवर्षवाला अन्तिम स्थितिबन्ध और गिरनेवाले के असंख्यातवर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध (७९-८०) तथा चढ़नेवालेके तीन घातियाकर्मोंका असंख्यातवर्षवाला अंतिम स्थितिबन्ध और उतरनेवालेका असंख्यात बर्षवाला प्रथमस्थितिबन्ध (८१-८२) एवं चढ़नेवालेके तीन अघातियाकर्मोंका असंख्यात वर्षवाला अन्तिम स्थितिबन्ध तथा उतरनेवालेके असंख्यात वर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध (८३.८४) ये छहों स्थान असंख्यातगुणे क्रमवाले हैं ।
विशेषार्थ:-- उससे चढ़नेवालेके मोहनीयकर्मका असंख्यात वर्षमात्र अंतिमस्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है जो कि असंख्यात हजारवर्षप्रमाण है और यह अन्तरकरणकालका समकालभावी स्थितिबन्ध है। उससे उतरनेवालेके मोहनीयकर्मका असंख्यातवर्षमात्र प्रथम स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है, गिरनेवालेके यहांपर असंख्यातगुणो प्रवृत्ति देखी जाती है । उससे चढ़नेवालेके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातियाकोका असंख्यात बर्षवाला अन्तिम स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। यह स्त्रीवेदके उपशमकालके संख्यातवेंभाग व्यतीत होजाने पर होता है । उससे उतरने वालेके तीनधातिया कर्मोंका असंख्यात वर्षवाला प्रथमस्थितिबन्ध असंख्यातगुरणा है । उससे चढ़नेवालेके तीन अघातिया (नाम-गोत्र-वेदनीय) कर्मोका असंख्यातवर्ष स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है, यह सात नो कषायोंके उपशामनकाल में संख्यातवेंभागके व्यतीत होनेपर होता है । उससे उतरनेवाले के तीन अघातिया कर्मोका असंख्यातवर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध असंख्यातगुरणा है । यहाँ उतरनेवालेके जो स्थितिबन्ध कहा है वह चढ़नेवाले के उस स्थितिबन्ध होने के काल स्थानको स्तोक अन्तरसे न प्राप्त होकर संभवता है। चढ़नेवाले के जो प्रथम स्थितिबन्ध होता है उतरनेवाले के उसके निकटवर्ती अवस्थाको पानेपर अन्तिम स्थितिबन्ध होता है।'
१. जयधवल मूल पृ० १६३५-३६ ।