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________________ ३०४] क्षपणासार [ गाथा ३७४ ३७७३ उच्छ्वास स्थापित करके इन्हें पूर्वगाथा निर्दिष्टप्रमाण एक मुहर्तकी खुद्दाभवग्रहण शलाकाओंसे अपर्तित करनेपर एक उच्छ्वासका साधिक भागप्रमाण क्षुद्रभवग्रहणका काल जानना चाहिए । इसप्रकार प्राप्त इस क्षुद्रभवग्रहण में संख्यातआवलि होती हैं। वह इसप्रकार है-( यदि अन्यमतानुसार ) एक उच्छ्वासकालके भीतर जधन्यसे २१६ श्रावलि मानी जाती है तो क्षुद्रभवग्रहणकाल सासादनके कालसे दुगुनामात्र प्राप्त होता है, जो अनिष्ट है, क्योंकि सासादनगुरगस्थानके कालसे संख्यातगुणे नीचेके कालसे इसका बहुत्व अन्यथा नहीं उत्पन्न होता इस कारण; यहां प्रावलिका गुणकार बहुत है अतः संख्यातहजार कोड़ाकोडीप्रमाण प्रावलियोंसे ( जहां कि एक पावलि भी जघन्ययुक्तासंख्यात समयप्रमाण होती है ) एक उच्छ्वास निष्पन्न होता है एवं उसका कुछकम १८वें भागप्रमाण ( वां भाग) क्षुद्रभवग्रहण होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । इसकारण नपुसकवेदोपशनकालसे क्षुद्रभवग्रहणकाल विशेषाधिक है ऐसा उचित है ।' उपसंतद्धा दुगुणा तत्तो पुरिसस्स कोहपढमठिदी । मोहोवसामणडा तिरिणवि भहियक्कमा होति ॥३७॥ अर्थः-उपशान्तकाल दुगुणा है (३५) । पुरुषवेदकी प्रथमस्थिति विशेष अधिक है (३६) । क्रोधकी प्रथमस्थिति विशेष अधिक है (३७) मोहनीयका उपशामन काल विशेष अधिक है (३८) । तीनपद अधिक क्रमसे हैं। विशेषार्थः-उस क्षुद्रभवसे. उपशांतकषायका काल दुगुणा है जो एक सेकिण्ड का बारहवाँ भाग सेकिण्ड] है [३५] । उससे पुरुषवेदकी प्रथमस्थितिका आयाम विशेष अधिक है, क्योंकि नपुंसकवेदके उपशमानेकाकाल, स्त्रीवेदके उपशमानेकाकाल और छह नोकषायोंके उपशमानेका काल इनतीनों कालोंका समूह पुरुषवेदकी प्रथमस्थिति है [३६] । उससे संज्वलनक्रोधकी प्रथमस्थितिका आयाम किंचित् न्यून त्रि. भागमात्रसे अधिक है, क्योंकि क्रोधके उपशामनाकालमें भी पुरुषवेदका प्रवेश देखा जाता है [३७] । उससे सर्वमोहनीयका उपशमांवनेका काल है, वह मान-माया-लोभके १. जयधवल मूल पृ० १६३० ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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