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यसम्सार
[ गाथा ३५२-५३ असंख्यातवेंभागमात्र है। इस सूत्र पर शङ्का व समाधान इसप्रकार है--"सासरणपच्छायदमिच्छाइछि संजमं गेण्हाबिय दंसणतियमुवसामिय पुणो चरित्तमोहमुवसामेदूण हेट्ठा प्रोयरिय प्रासाणं गदस्स अंतोमुहुत्तरं किण्ण परूविदं ? ण, उवसमसेढीदो श्रोदिण्णाणं सासरणगमणाभावादो। तं वि कुदो णबदे ? एदम्हादो चेव भूदबली वपणादो।"
राडा-सासादनगुणस्थानसे पीछे लौटे हुए मिथ्यादृष्टिजीवको संयम ग्रहण कराकर और दर्शनमोहनोयकी तीन प्रकृतियोंका उपशामन कराकर पुनः चारित्रमोहका उपशम कराकर नीचे उतारकर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुए जीवके अंतर्मुहूर्तप्रमाण अन्तर क्यों नहीं बताया ?
समाधान:-- नहीं, क्योंकि उपशमणिसे उतरनेवाले जीवोंके सासादनगुरणस्थानमें गमन करनेका अभाव है।
सडा---यह कैसे जाना? समाधान:--भूतबली आचार्यके इसी वचनसे जाना जाता है । इसप्रकार अवरोहकके सासादनाभावका निर्णय किया गया।
अथानन्तर उपशमणि चढ़नेवाले १२ प्रकारके जीवोंकी क्रियामें पाये जाने । वाले मेवका कथन १२ गाथाओंमें करते हैं
कोधोदयचलियस्सेसाह परूवणा हु पुमाणे। मायालोहे चलिदस्सस्थि विसेसं तु पत्तेयं ।।३५२॥
अर्थ-पूर्व में कही सर्व प्ररुपणा पुरुषवेद और क्रोधोदय सहित उपशमश्रेणी चढ़नेवाले जोवको कही गई है । पुरुषवेद और संज्वलन मान, माया या लोभ सहित उपशमश्रेणि चढ़नेवाले जीवोंमें से प्रत्येक की क्रिया विशेष है। उसीका कथन आगे करते हैं--
दोरहं तिरहं चउराह कोहादीणं तु पढमठिदिमिचं ।
माणस्स य मायाए बादरलोहस्स पढमठिदी ।।३५३॥ १. प. पु. ५ पृ. १०-११ ।