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गाथा ३४५] क्षपणासार
[ २८५ अथानन्तर स्वस्थामसंयमीके गुणणि आयाम सम्बन्धी तीन स्थानों का कपन करते हैं
सट्ठाणे तावदियं संखगुणणं तु उवरि घडमाणे । विरदाविरदाहिमहे संखेज्जगणं तदो तिविहं ॥३४५॥
अर्थ:-उपशमश्रेरिणसे उतरनेवालेके स्वस्थान संयत होनेपर भी गुणश्रेणि मायाम उतना ही रहता है । पुनः ऊपर चढ़नेपर गुणश्रेणि-मायाम संख्यातगुणाहीन हो जाता है । विरताविरतके अभिमुख होनेपर गुणश्रेरिणायाम संख्यातगुणा हो जाता है।
विशेषार्थ:---उपशम रिगसे उतरनेवालेके अधःप्रवृत्तकरणके प्रथमसमय में जो अन्तर्मुहूर्तप्रमाण वाला गुणश्रेणि निक्षेप ( आयाम ) था वह अन्तर्मुहूर्तकालतक अवस्थित रहता है, क्योंकि वृद्धि हानिके कारणोंका प्रभाव है, किन्तु प्रदेशाग्रकी अपेक्षा नियमसे हीयमान है कारण कि विशुद्धि में अनन्तगुणी हानिके कारण परिणाम हीयमान होते हैं । अन्तर्मुहूर्तकाल बीत जाने के पश्चात् गुणश्रेणियायाम कथंचित् वृद्धिको प्राप्त होता है, कथंचित् घटता है और कथंचित् अवस्थित रहता है । अधःप्रवृत्तकरणके प्रथमसमयसे लेकर अन्तमुहर्तकालतक अवस्थित गुणश्रेणियायाम में गुणश्रेणि निक्षेप करके उसके पश्चात् गुणश्रेणिनिक्षेपके आयाममें वृद्धि-हानि और अवस्थान इन तीनमें से कोई एक अवस्था होती है। स्वस्थान अप्रमत्तसंयत होकर प्रमत्तसंयत-अप्रमत्तसंयत्त गुणस्थानों में झूलनेवालेके अवस्थित पायामवाला गुणश्रोणि निक्षेप होता है । संयमासंयम गुणस्थानको गिरकर प्राप्त होनेवालेके गुणश्रेणिनिक्षेपका पायाम संख्यातगुणवृद्धिके द्वारा बढ़ जाता है । नीचे गिरकर प्रागम-अविरोधसे पुनः उपशम या क्षपकणि चढ़नेवाले के पूर्व गुणश्रेणिशीर्षसे नीचे संख्यातगुणहानिके द्वारा हीन होकर गुणश्रेणि निक्षेपका आयाम होता है। इसीप्रकार सभी गुणश्रेणिनिक्षेपोंके प्रायामके विषय में समझना चाहिए ।
प्रदेशोंकी अपेक्षा वृद्धि हानि और अवस्थान विषय विभागको जानकर लगा लेना चाहिए। अन्तर्मुहूर्तप्रमाण कालको छोड़कर उसके आगे स्वस्थान संयत भाक्से वर्तन नहीं करनेवालेके संक्लिष्ट विशुद्ध परिणामोंके वशसे वृद्धि-हानि और अवस्थान