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क्षपणासार
मोहनीय कर्मके अतिरिक्त अन्य कर्मोंका उपशम नहीं होता, क्योंकि ज्ञानावरणादि कर्मोके उपशामनारूप परिणाम सम्भव नहीं है । अकरपोपशामना और देशकरणोपशामना उन कर्मोंमें होती है, किन्तु यहां प्रशस्तकरणोपशामनाका प्रकरण है इसलिए मोहनीयकर्मकी ही प्रशस्त उपशामना के द्वारा उपशम होता है । { अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके प्रथम समय में ज्ञानाबरणादि सर्व कर्मों के अप्रशस्त उपशामना, नित्ति और निकाचित ये तीनोंकरण व्युच्छिन्न हो जाते हैं।'
उपशमणिमें दर्शनमोहनीय कर्मका उपशम नहीं होता, क्योंकि दर्शनमोहनीयका उपशम या क्षय पूर्व में ही हो जाता है। अनन्तानुबन्धी कषायका भी उपशम नहीं होता, क्योंकि पहले अनन्तानुबन्धीकषायकी विसंयोजना करके पश्चात् उपशमश्रेणि चढ़ता है। बारह कषाय और नव नोकषायका उपशम होता है।
१. अंपियट्टिपढमसमये सब्बकम्मारणं पि प्रप्पसत्थउबसामरणाकरणं, रिणवत्तीकरण, पिकाचणाकरण घ वोच्छिण्णारिण।
(ज. प. म. पृ. १८८५, क. पा. सुत्त पृ. ७१२ सूत्र ३५६ )