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________________ ४८ ] लन्धिसार [ गाथा ५८ गाथामें जो 'समऊणावलितिभाग' पद आया है उससे एकसमयकम आवलिका विभाग व एकसमयअधिक ऐसा ग्रहण करना चाहिये। उदयावलिके बाहर जघन्यनिक्षेपप्रमाण स्थितिका उलंघनकरके जो स्थिति स्थित है उसके प्राप्त होनेपर पूरी एकावलिप्रमाण अतिस्थापना होती है । उससे आगे निक्षेप बढ़ता है, क्योंकि उत्कृष्टनिक्षेपके प्राप्त होनेतक जघन्यनिक्षेपसे आगे एक-एकसमयाधिक क्रमसे निक्षेपकी वृद्धि होनेमें कोई विरोध नहीं आता, क्योंकि निर्व्याघातप्ररुपणामें सत्त्वप्रकृति पर्याप्त है । (स्थितिकांडकघातका अभाव निर्व्याघात कहलाता है।) उदयस्थितिसे लेकर एकसमयाधिक दोनावलिप्रमाण स्थान आगे जाकर वहां अतिस्थापना व निक्षेप दोनों ही एक-एक प्रावलि प्रमाण हो जाते हैं उदयावलिके बाहर वहांतकको सर्वस्थितियोंके प्रदेशानोंका निक्षेप उदयावलिके भीतर ही होता है । सर्वत्र अपकर्षितस्थितिको छोड़ कर उससे नीचे अनन्तरवर्ती स्थितिसे लेकर एकावलिप्रमाण स्थितियां प्रतिस्थापना होती हैं तथा उदयस्थितिसे लेकर प्रतिस्थापनासे पूर्वतककी सर्वस्थितियों में निक्षेप होता है।। उक्कस्सद्विदिषंधो समयजुदावलिदुगेण परिहोणो । प्रोक्कदिदिम्मि चरिमे ठिदिम्मि उपकस्सणिक्खेत्रो ॥५८।। अर्थ-उत्कृष्टस्थितिका बन्ध होनेपर चरमस्थितिके अपकर्षितद्रव्यका समयाधिक दोप्रावलिहीन उत्कृष्टस्थितिप्रमाण उत्कृष्टनिक्षेप होता है । विशेषार्थ- उत्कृष्टस्थितिको बांधकर और बन्धावलि ( अचलावलि ) को व्यतीतकर फिर चरम अर्थात् अग्रस्थितिका अपकर्षणकरनेपर अतिस्थापनाकी एक प्रावलिको छोड़कर, उदयपर्यन्त उस अपकर्षितद्रव्यके निक्षिप्त करनेपर निक्षेपका प्रमाण एकसमयाधिक दोश्रावलिसे न्यून' उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण उत्कृष्टनिक्षेप उपलब्ध होता है। १. ज. प. पु. ८ पृ. २४७ । २. बन्धके बाद बद्रव्यावलि तक तो सकलकरणोंके अयोग्य होनेसे बद्रव्यका मालिकाल तक अपकर्षण भी नहीं होगा सो १ प्रावलि तो यह कम पड़ी तथा प्रतिस्थापना (प्रावलीप्रमारण ) में अपकृष्ट द्रव्य का निक्षेप नहीं होता। पावली यह और गई तथा अन्तिम निषेकके द्रव्य का उसी निषेक में तो निक्षेप या प्रतिस्थापना होती नहीं प्रतः एक वह स्वयं कम पड़ा । इसप्रकार बंधायलि+प्रतिस्थापनावलि+अपकृष्यमारण निषेक-कुल एक समय अधिक दो श्रावलिमें निक्षेपण का प्रभाव हुआ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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