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________________ १२२) क्षपणासार [गाथा १३१ द्रव्य १३ है इसलिए १४ गुणा संक्रमण होता है अतः क्रोधको द्वितीयसंग्रह कृष्टि में आयद्रव्य १८२ है । यहां १४ गुणा करने का प्रयोजन कहते हैं अनन्तर भोगने योग्य संग्रहकृष्टि में संगात गुणे का संक्रमण होता है वह यहां संख्यातके प्रमाण अपने गुणकारसे एक अधिक जानना । यही क्रोधको प्रथमसंग्रहकृष्टिको और उसके पश्चात् क्रोधको द्वितोयसंग्रहकष्टिको भोगता है इसलिये क्रोधको प्रथमसंग्रहकृष्टिके अपकर्षितद्रव्यसे संख्यातगुणा द्रव्य द्वितोयसंग्रहकृष्टि में संक्रमित होता है। प्रयमसंग्रहकृष्टिद्रव्य में गुणकार १३ है अतः उससे एक अधिक (१३+१) करवेपर यहां संख्यातका प्रमाण १४ होगा (१३४१४-१८२) । अन्यसंग्रहकष्टिके वेदक काल में संख्यातका प्रमाण अन्य होगा, उसे आगे कहेंगे। कोषको प्रथमसंग्रहकष्टि में आय द्रव्य नहीं है, क्योंकि वहां आनुपूर्वी संक्रमण पाया जाता है। इस प्रकार आयद्रव्यका कथन करके अब व्ययद्रव्यको कहते हैं क्रोवको प्रयमसंग्रहकृष्टिका द्रव्य कोषको द्वितीय, तृतीय व मानकी प्रथम. संग्रहकष्टिमें संक्रमण कर गया प्रतः (१८२+१३+१३) क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टिका व्ययद्रव्य २०८ हुमा, क्रोधको द्वितीयसंग्रहकष्टिका -द्रव्य क्रोधको तृतीय व मानको प्रथमसंग्रहकृष्टिमें संक्रमणकर गया इसलिए क्रोधको द्वितीयसंग्रहकष्टिका व्ययद्रव्य दो है तथा क्रोधको तृतीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य मानकी प्रथमसंग्रहकष्टिमें ही संक्रमणकर गया अतः क्रोध को तृतीयसंग्रहकृष्टिमें व्ययद्रव्य एक ही है । मानकी प्रथमसंग्रहकष्टि का द्रव्य मानको द्वितीय, तृतीय व मायाको प्रथमसंग्रहकृष्टि में संक्रमणकर गया इसलिए मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिका व्ययद्रव्य तीन है, मानकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य मानकी तृतीय व मायाको प्रथमसंग्रहकृष्टि में संक्रमणकर गया अत: मानको द्वितीय-दितीयसंग्रहकृष्टिमें व्ययद्रव्य दो वै । मानको तृतीयसंग्रहकष्टिका द्रव्य मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टि में ही संक्रमणकर गया अत: मानकी तृतीयसंग्रहकष्टिमें पयद्रव्य एक है। मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टिका द्रव्य द्वितीय, तृतीय व लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टिमैं संक्रमणकर गया इसलिए मायाको प्रथमसंग्रहकृष्टि में व्ययद्रव्य तोन है, मायाको द्वितीय संग्रहकृष्टिका द्रव्य मायाको तृतीय और लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टि में संक्रमित हुआ अत: मायाको द्वितीयसंग्रहकष्टि में व्ययद्रव्य दो है । मायाको तृतीयसंग्रहकृष्टि का द्रव्य लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टि में ही संक्रमित हुआ इसलिए यहां व्ययद्रव्य एक ही है। लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टि का द्रव्य लोभकी द्वितीय व तृतीयसंग्रहकृष्टि में गया इसलिए लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टिका व्यय द्रव्य दो है,
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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