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________________ ८] [ माथा ७६ इन विकल ( अवान्तर ) खण्डों में से एक विकल खण्डको ग्रहणकर अपूर्वखण्डों पार्श्व में देना चाहिए और शेष समस्त विकलखण्डों को पूर्वस्पर्धकों में देना चाहिए । इसीप्रकार शेष समस्त सकलखण्डों के विकल (अवान्तर ) खण्ड करके पूर्व- अपूर्व स्पर्धकों में देना चाहिए। इसप्रकार पूर्वस्पर्धकको आदिवर्गणा में दिए गये सर्वविकलखण्डों का प्रमाण एक सकलखण्ड के बराबर नहीं होता, किन्तु किंचित्ऊन सकलखण्डप्रमाण होता है । यदि अवकर्षण- उत्कर्षणमामाहारप्रमाण विकलखण्ड और होते तो एक सकलखण्ड हो जाता । इसप्रकार अपूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणा में जो द्रव्य दिया गया है वह किंचित्ऊन एक सकलखण्डप्रमाण है । अपूर्वस्पर्धकों में एककम अपकर्षण- उत्कर्षणभागहारप्रमाण द्रव्य दिया गया है। इससे सिद्ध हो जाता है कि अपूर्वस्पर्धककी अन्तिम वर्गणा में निश्चित प्रदेशाग्रोंसे पूर्व स्पर्धक की आदिवर्गणा में विक्षिप्त प्रदेशाग्र असंख्यातगुणेहीन हैं। यहांवर गुणाकार साधिक अपकर्षणउत्कर्षणभागाहार है । इसलिए पूर्वस्पर्धककी प्रादिवर्गणा में जो प्रदेशाग्र पहले से विद्यमान हैं उनके असंख्यातवेंभाग प्रदेशाग्रोंका निक्षेपण होता है । पूर्वस्पर्धकों की द्वितीयवर्गणा में विशेषहीच प्रदेशाघ्र दिये जाते हैं । पूर्व और अपूर्वस्पर्धकों में दिये गये अवशेष द्रव्य द्वारा पूर्व और अपूर्वस्पर्धकों की एक गोपुच्छाकार बच जाती है । चित्र नं० ५ अन् १२ खण्ड क्षपणासार पूर्व स्पर्धक
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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