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गाथा ६३ ]
क्षपणासार
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अर्थ:- बन्धसे अधिक उदय और उदयसे अधिक संक्रमण होता है । इसप्रकार अनुभाग के विषयमें अनंतगुणित गुणश्रेणि जानना चाहिए अर्थात् यहां अधिकका प्रमाण अनन्तगुणा है ।
विशेषार्थ:-- अनुभागको अपेक्षा तत्काल होनेवाला बन्ध अल्प है, बन्धसे उदय अनन्तगुणा है जो कि चिरंतनसत्त्व के अनुभागस्वरूप है, उदयसे संक्रमण अनन्तगुणा है, क्योंकि अनुभागसत्त्व अनन्तगुणाहीन होकर उदय में श्राता है, किन्तु चिरंतन - सस्त्रका संक्रमण तदवस्वरूपसे हो पर प्रकृति में संक्रमित होता है। यह अल्पबहुत्वका कथन घातिया कर्मसम्बन्धी है ।
'गुणसेदि अांतगुणेगूणा य वेदगो दु अभागो । गणादियंतसेडी पदेसग्गेण बोधव्वा || ६३ ।। ४५.४॥
अर्थ :- अप्रशस्त प्रकृतियोंके अनुभागका प्रतिसमय अनन्तगुणितहीन गुणश्रेणिरूपसे वेदक होता है, किन्तु प्रदेशाग्रकी अपेक्षा गणनातिक्रान्त अर्थात् असंख्यातगुणित श्रेणिरूप से वैदक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ : - विवक्षित समय में अनुभागोदय बहुत होता है। इसके अन्दरसमय में अनुभागका उदय अनन्तगुणा - अनन्तगुणाहीन जानना चाहिए । प्रदेशोदय विवक्षित समय में अल्प होता है, इसके अनन्तरसमय में असंख्यातगुणा होता है । इसीप्रकार उत्तरोत्तर समयों में सर्वत्र असंख्यातगुणा प्रदेशोदय जानना चाहिए ।
१. गुणसेढि अनंतगुणेणूगाए वेदगो दु अणुभागे । गणादियंतसेढी पदेस अग्गेण बोद्धव्वा ॥ १४६ ॥ क० पा० सुत्त पृष्ठ ७७० । धवल पु० ६ पृष्ठ १६३ । जयधवल मूल पृष्ठ १९६६ ।
२. अस्सि समए अणुभागुदयो बहुगो से काले अणंतगुणहीनो । एवं सव्वस्य । (क० पा० सुत्त सूत्र ३५६ पृष्ठ ७७० ) तदो समए समए अनंतगुणहीण मर्णत गुण हीण मपसत्य कम्माण मणुभागमेसो वेदयदि ति गाह्रा पुष्बद्धे समुदयस्यो । ( घबल पु० ६ पृष्ठ ३६३ टि० नं० १) । जयधवल मूल पृष्ठ १६६७ ।
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३. पदेस सुदयो अस्सि समए थोवो से काले असंखेज्जगुर । एवं सव्वस्थं । क० पा० सुत्त सूत्र ३५७ पृष्ठ ७७० | गणणादियंतसेढी एवं भणिदे असंखेज्जगुणाए सेकीए पदेसग्गमेसो समय पंडि वेदेदिति भणिदं होई । (घबल पु० ६ पृ० ३६३ टि० नं० १ )