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________________ क्षपणासार गाथा ३९ ] [ ३९ इसप्रकार अपूर्वकरणगुणस्थानसम्बन्धी क्रियाको करके अनिवृत्तिकरणगुणस्थानमै प्रविष्ट होकर, वहां भी अनिवृत्तिकरण कालके संख्यातबहभागको अपूर्वकरणके समान स्थितिकाण्डक घातादि विधिसे बिताकर अनिवृत्तिकरण के काल में संख्यातवांभाग शेष रहनेपर स्स्थानमृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, नरकगति आदि नामकर्मकी १३ ऐसे उपयुक्त १६ प्रकृतियों का क्षय करता है। पश्चात् अन्तर्मुहूर्त व्यतीत करके प्रत्याख्यानावरण और अप्रत्याख्यानावरण सम्बन्धी क्रोध-मान-माया और लोभ इन आठ प्रकृतियों का एक • साथ क्षय करता है । यह सत्कर्मप्राभृतका उपदेश है, किन्तु कषायप्राभृतका उपदेश तो इसप्रकार है कि पहले आठकषायोंके क्षय हो जानेपर पीछेसे एक अन्तर्मुहूर्त में पूर्वोक्त सोलह कर्मप्रकृतियां क्षयको प्राप्त होतो हैं । ये दोनों ही उपदेश सत्य हैं ऐसा कितने हो आचार्यों का मत है, किन्तु उनका ऐसा कहना घटित नहीं होता, क्योंकि उनका ऐसा कहना सूत्रसे विरुद्ध पड़ता है तथा दोनों कथन प्रमाण हैं यह वचन भो घटित नहीं होता है, क्योंकि "एक प्रमाणको परे प्रमाणका विरोधी नहीं होना चाहिए" ऐसा न्याय है। शंका:-नानाजीवोंके नानाप्रकारकी शक्तियां सम्भव है; इसमें कोई विरोध नहीं आता है। अतः कितने ही जीवोंके आठ कषायोंके नष्ट हो जाने पर तदनन्तर सोलहकर्मोके क्षय करनेकी शक्ति उत्पन्न होती है। इसलिए उनका आठकषायोंका क्षय हो जाने के पश्चात् सोलहकर्मों का क्षय होता है, क्योंकि "जिस क्रमसे कारण मिलते हैं उसी क्रमसे कार्य होता है," ऐसा न्याय है तथा कितने ही जीवों के पहले सोलहकर्मों के क्षयको शक्ति उत्पन्न होती है तदनन्तर आठ कषायों के क्षयकी शक्ति उत्पन्न होती है । इसलिए पहले १६ कर्मप्रकृतियां नष्ट होती हैं पश्चात् एक अन्तमुहर्त के व्यतीत होने पर आठकषायें नष्ट होती हैं अतः पूर्वोक्त दोनों उपदेशों में कोई विरोध नहीं आँता है, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं । समाधानः--किन्तु उनका ऐसा कहना घटित नहीं होता, क्योंकि अनिवृत्तिकरणगुणस्थानवाले जितने भी जीव हैं वे सब अतोत, वर्तमान और भविष्यकालसम्बन्धी किसी एकसमयमें विद्यमान होते हुए भी समान-परिणामवाले ही होते हैं इसीलिए उन जीवों की गुणश्रेणी निर्जरा भी समानरूपसे हो पाई जाती है । यदि एकसमयस्थित अनिवृत्तिकरणगुणस्थानवालोंको विसदृश परिणामवाला कहा जाता है तो जिसप्रकार एकसमयस्थित अपूर्वकरणगुणस्थानवालों के विसदृश परिणाम होते हैं अतएव उन्हें अनि
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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