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गाया १३ ]
क्षपणासार
आबाधाकालसे ऊपर जितनी भी स्थितियां हैं उनका उत्कणि होने पर जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अतिस्थापनावलि प्रमाण है, क्योंकि अन्य प्रकार होना असम्भव है । पाबाधाकाल से अधस्तनवर्ती पर स्थितिकका उम होनेपर अतिस्थापना किसी स्थिति की तो एकआचलि, किसी स्थिति की एकसमय अधिक प्रालि, विसी स्थिति. की दो समय अधिक आवलि और किसीकी तीनसमय अधिक आवलि है । इस प्रकार निरन्तर एकसमय अधिक तक बढ़ना चाहिए जब तक उदयालिसे बाहर अनन्तस्थितिकी सर्वोत्कृष्ट अतिस्थापना प्राप्त नहीं होती।
शंकाः- उत्कृष्ट अतिस्थापनाका प्रमाण कितना है ?
समाधानः-जिसकर्मकी जो उत्कृष्ट आबाधा है वह एक समय अधिक आवलि से हीन आबाधा उस कर्मको उत्कृष्ट अतिस्थापना है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होने पर उत्कृष्ट आबाधा होती है और उसीके एक समय अधिक आवलिकम उत्कृष्ट आबाधा ही उत्कृष्ट अतिस्थापना होती है । उदयालि से बाहर अनन्तर स्थिति का उत्कर्षण होनेपर उत्कृष्ट प्रतिस्थापना प्राप्त होती है।
क्षपककी प्ररूपणाके अवसर में संसारअवस्थासम्बन्धी उत्कर्षणकी अर्थपद प्ररूपणा की गई है, क्योंकि क्षपकणिमें सत्कर्मसे अधिक स्थितिबन्ध न होनेसे उत्कर्षण प्ररूपणा सम्भव नहीं है । जिसप्रकार उत्कर्षण-विषयक जघन्य उत्कृष्ट निक्षेप और अतिस्थापना. का प्रमाण बतलाया है, उसीप्रकार अपकर्षणसम्बन्धी निक्षेप और अतिस्थापनाका भी जान लेना चाहिए । अब उन्हीं उत्कर्षण-अपकर्षणसम्बन्धी अल्पबहुत्वको कहते हैं
(१) उत्कर्षण की जानेवाली स्थिति का जघन्यनिक्षेप सबसे स्तोक है, क्योंकि वह आवलिके असंख्यातāभागप्रमाण है । (२) इससे अपकर्षणकी जानेवाली स्थितिका जघन्य निक्षेप असंख्यातगुणा है, क्योंकि उसका प्रमाण एक समय अधिक आवलिका विभाग प्रमाण है । (३) इससे अपकर्षणसम्बन्धी जघन्य अतिस्थापना कुछकम दोगुणो है, क्योंकि इसका प्रमाण एकसमयकम आवलिका दो त्रिभाग है और जघन्यनिक्षेपका प्रमाण समयाधिक विभाग प्रमाण है इसलिए जघन्य अतिस्थापना दो समयकम दुगुणी है अतः विशेष अधिक है । (४) अपकर्षणसम्बन्धी उत्कृष्ट अतिस्थापना और निा
२. जयधवल मूल पृष्ठ २००८ ।
१ जयधवल मूल पृष्ठ २००७ से २०११ तक। ३. जयधवल मूल पृष्ठ २०११ ।