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[ गाथा १०
समयाधिक है, किन्तु अतिस्थापना पूर्व से एकसमय बढ़ जाती है । उपरितन- उपरितनस्थितिवाले निषेकोंके द्रव्यका अपकर्षण होनेपर जघन्यनिक्षेपको अवस्थित करके अतिस्थापना एक-एक समय के क्रमसे तब तक बढ़ानी चाहिए जबतक समयाधिकविभाग निक्षेपके ऊपर एक आवलिप्रमाण उत्कृष्ट अतिस्थापना नहीं हो जातो। उसके पश्चात् अवलिप्रमाण अतिस्थापनाको अवस्थित करके एक-एकसमयके प्रमाणसे निक्षेपको तब तक बढ़ाना चाहिए जबतक उत्कृष्टनिक्षेप हो जावे । उत्कृष्टनिक्षेपका प्रमाण समयाधिक दो आवलिकम उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है जो इसप्रकार है- कषायकी उत्कृष्टस्थिति चालीसकोड़ाकोड़ो सागरप्रमाण बांधकर पुनः बंधावलिकाल बितानेपर ४० कोड़ाकोड़ीसागरको उत्कृष्टस्थिति एक आवलिप्रमाण कम होगई । बंधावलिके व्यतीत हो जानेपर अग्रस्थिति के द्रव्यको अपकर्षणकर उपमिनीचे एक कालिप्रमाण अतिस्थापना छोड़कर नीचे उदयस्थितिपर्यन्त वह अपकर्षण किया हुआ द्रव्य दिया जाता है । इसप्रकार बन्धावलि, अग्रस्थिति, अतिस्थापनावलि अर्थात् समयाधिक दो आवलिप्रमाणको कर्म स्थिति में से कम करनेपर स्थिति अपकर्षणसम्बन्धी उत्कृष्ट निक्षेपका प्रमाण होता है' ।
क्षपणासार
उदया
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मानाकि उत्कृष्टस्थितिका प्रमाण १००० समय है, आवलिका प्रमाण १६ समय है । स्थिति अपकर्षणसम्बन्धी जघन्यनिक्षेप व अतिस्थापना इसप्रकार हैवलि १६ समय, उदयाबलिके अनन्तर ऊपर १७ वें निषेकका अपकर्षणकर के उदद्यावलिमें देना है । एकसमयकम आवलि ( १६ - १ = १५ ) का दो विभाग ( १५ ) १० समय अर्थात् ७ वें निषेकसे १६ वें निषेकतक अतिस्थापना है और एकसमय अधिक विभाग ( १५ x .+१= ६ ) ६ समय निक्षेप है अर्थात् प्रथमनिषेकसे छठे निषेकतक निक्षेप है । १८वें समयसम्बन्धी निषेकके द्रव्यका अपकर्षण होनेपर पूर्ववत् प्रथम ६ निषेक तो निक्षेप है और ७वें निषेकसे १८वें निषेकतक ११ निषेक अतिस्थापनारूप हैं । इसीप्रकार १६ वें निषेकका अपकर्षण होनेपर १२ निषेक और २०वें निषेकका अपकर्षण होनेपर १३ निषेक अतिस्थापनारूप होते हैं. किन्तु निक्षेप पूर्ववत् ६ समय ही है । इसप्रकार एक-एक समय बढ़ते २३ वें निषेकसम्बन्धी द्रव्यका अपकर्षण होनेपर अतिस्थापना १६ समयप्रमाण एकआवलि हो जाती है, किन्तु निक्षेप प्रथम ६ समय प्रमाण है । २४वें नियोकके द्रव्यका अपकर्षण होनेपर अतिस्थापना तो पूर्ववत् १६ समयप्रमाण और निक्षेप एकसमय बढ़ जाता है अर्थात् प्रथमसात निषेकों में द्रव्यसिंचित किया जाता है । इसके
१. जयघवल मूल पू० २००२-२००४ तक ।