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अन्त में मैं अपने को अन्य समझता हूं कि वार्धध की अवस्था में मुझे इन सिद्धान्त ग्रन्थों के प्रकाशन का मंगलमय सुअवसर प्राचार्य श्री शिवसागर ग्रन्थमाला के माध्यम से प्राप्त हुमा । स्व. मुख्तार सा. का मैं अत्यन्त कृतज्ञ हूं कि जिन्होंने नेमिचन्द्र भारती प्रकाशन योजना के अन्तर्गत त्रिलोकसार एवं मोम्मटसार कर्मकाण्ड की टीकाओं की वाचना-सम्पादनादि में अमूल्य सहयोग दिया तथा लब्धिसार-क्षपणासार, गोम्मटसार जीवकाण्ड की टीका लिखकर मध्येता समाज को उपकृत किया है । द्रव्य प्रदाता श्रीमान् रामचन्द्रजी कोठारी का भी मैं अत्यन्त प्राभारी हूं, जिन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ के लिए प्राथिक भार वहन किया है और तत्त्व जिज्ञासुओं को लाभान्वित किया है। द्रव्यप्रदाता की भावना को देखते हुए इस ग्रन्थ का मूल्य स्वाध्याय रखा है। माशा दै स्वाध्यायोजन सेठ सा. की इस उदारता का पूर्ण लाभ लेंगे।
अन्त में बाकलीवाल प्रिण्टर्स का भी माभार मानता हूं कि ग्रन्थ मुद्रण का कार्य अत्यन्त तस्परता से किया है। साथ ही प्रेस कर्मधारो भी धन्यवादाह हैं जिन्होंने ग्रन्थ का सुन्दर मुद्रण किया है । नेमीचन्दजी बाकलीवाल तथा उनके सुपुत्र गुलाबचन्द एवं भूपेन्द्रकुमार भी जैनदर्शन के ग्रन्थों का मुद्रण प्रत्यन्त सुन्दरता से एवं परिश्रम से करवाते हैं।
ब्र. लाडमल जैन