SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "प्रकाशकीय निवेदन" दिगम्बर जैन साहित्य में सर्वप्रथम ग्रन्थरूप से सूत्रनिबद्ध लिपिबद्ध सैद्धान्तिक कृति षटखण्डागम सूत्र है । जिन्हें घर सेनाचार्य तक (परम्परा से ह्रासोन्मुख रूपेण) प्रागत भल्पतम एक देश अंगज्ञान को स्वयं धरसेनाचार्य से प्राप्त कर पुष्पदन्त-भूतबली प्राचार्यद्वय ने ग्रन्थ रूप में सुरक्षित किया था। लगभग इन्हीं के समकालीन गुण घराचार्य ने कषायपाहुड़ नामक ग्रन्थ गाथासूत्र में निबन्ध किया था। इन्हीं दो ग्रन्थों पर धवल-जयधवल एवं महाधवल (महाबन्ध) टीकाएं विस्तारपूर्वक वीरसेन स्वामी ने लिखी हैं । इन्हीं के आधार से श्रीमन्नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती प्राचार्यदेव ने चामुण्डराय . के निमित्त गोम्मटसार (जीवकाण्ड-कर्मकाण्ड) तथा लब्धिसार-क्षपणासार ग्रन्थयो की रचना की है। जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था कलकत्ता से लगभग ४० वर्ष पूर्व संस्कृत टीकाओं एवं पं. टोडरमलजी की हिन्दी टीका सहित शास्त्राकार रूप से ये नन्थ प्रकाशित हो चुके थे। वर्तमान में ये ग्रन्थ अनुपलब्ध भी थे तथा इनकी हिन्दी टीका ढुढारी भाषा में थी । अतः माधुनिक हिन्दी से परिचित अध्येतामों को इम ग्रन्थों के स्वाध्याय का यथोचित लाभ नहीं मिल पा रहा था । इसी को दृष्टिपथ में रखते हुए प. पू. प्राचार्य श्री शिवसागरजी महाराज की स्मृति में स्थापित ग्रन्थमाला से चारों अनुयोग सम्बन्धी ग्रन्थ प्रकाशन योजना के अन्तर्गत करणानुयोग से सम्बन्धित इन ग्रन्थों का प्रकाशन भी पिछले म.६ वर्षों से निरन्तर चल रहा है । नेमिचन्द्राचार्य द्वारा विरचित त्रिलोक सार ग्रन्थ की माधवचन्द्र विद्यदेव द्वारा रवित संस्कृत टीका सहित प्रा. विशुद्धमती माताजी द्वारा विचित हिन्दी टीका के प्रकाशन से ग्रन्थमाला ने नेमिचन्द्र भारती का प्रकाशन प्रारम्भ किया था और उस भारती के ही ग्रन्थ गोम्मटसार कर्मकाण्ड का प्रकाशन प्रायिका प्रादिमती माताजी की हिन्दी टीका सहित सभी दो वर्ष पूर्व ही हुआ है। प्रायिकाद्वय भाचार्य श्री शिवसागरजी की ही दीक्षित विदुषी शिष्याएं हैं। अब नेमिचन्द्र भारती का तत्तीय चरण लब्धिसार-क्षपणासार के रूप में प्रकाशित हो रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ की टीका करणानुयोग मर्मज्ञ स्व. अ. पं. रतनचन्दजो मुख्तार सहारनपुर निवासी ने की है । पंडितजी ने ग्रन्थमाला से प्रकाशित होने वाले अन्य कई अन्थों का भी सम्पादन किया है । त्रिलोकसार और गोम्मटसार कर्मकाण्ड की टीकानों का वाचन भी मापके सानिध्य में ही हुमा है। गोम्मटसार कर्मकाण्ड की वाचना के अवसर पर प पू. प्रा. क. श्री श्रुतसागरजी महाराज के
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy