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शव
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उदयादि अवस्थित १२० गुणरणी प्रायाम २४५ तथा
२८३ उदयादि गलितावशेष १३० गुणश्रेणी प्रश्याम २८३
परिभाषा पिक:); धवल १२/४५७.५८ कहा भी है-विणासविसए दोगिण गया होति अप्पाटाणुच्छेदो प्रणुप्पादाणूच्छेदो चेदि । वानी विनाश के विषय में दो नय हैंउत्पादानुच्छेद और अनुत्पादानुच्छेद । उत्पादानुच्छेद का अर्थ द्रव्यापिकनय है।.... अनुत्पादानुच्छेद का प्रथं पर्यायाथिकनय है । उत्पादानुनछेद सद्भाव की अवस्था में ही विनाश को स्वीकार करता है । तथा अनुत्पादानुच्छेद प्रसद् अवस्था में प्रभाव संशा को स्वीकार करता है । धवल १२/४५७-४५८ परिणामों की विशुद्धि की वृद्धि से. अपवर्तनाकरण के द्वारा उपरितन स्थिति से हीन करके अन्तर्मुहूर्त काल तक प्रतिसमय उत्तरोत्तर असंख्याप्तगुणित वृद्धि के क्रमसे कर्म प्रदेशों की निजंरा के लिये जो रचना होती है उसे पुण घेणी कहते हैं। जैन सक्षणाबली २/४१३-४१४ जितने. निषेकों में असंख्यात गुणश्रेणीरूप से प्रदेशों का निश्शेपरण होता है वह गुणश्रेणी मायाम कहलाता है । यह गुणश्रेणी प्रायाम भी दो प्रकार का होता हैं । १ गलितावशेष २ अवस्थित (देखो चित्र पृ० २८३ ल. सा.) गलितावशेष गुणधरणी-गुणणी प्रारम्भ करने के प्रथम समय में जो गुणश्रेणी प्रायाम का प्रमाण था उसमें एक-एक समय के बीतने पर उसके द्वितीयादि समयों में गुणश्रेणो- प्रायाम क्रम से एक एक निषेक प्रमाण घटता हा प्रवशेष रहता है, इसलिये उसे गलितावशेष गुणश्रेणी प्रायाम कहते हैं। उदय समय से लगाकर गुणने पो होने पर उदयादि गलितावशेष गुणधेरणी कहलाती है तथा उदयावली से बाहर गुरिगतकम से प्रदेश विन्यास हो तो उदयाबलि बाह्य गलितावशेष गुणश्रेणी कहलाती है। अवस्थित गुणश्रेणी-प्रथम समय में गुणश्रेणी का जितने भामाम लिये भारम्भ किया उतने प्रमाण सहित ही द्वितीयादि समयों में उतना ही पायाम रहता है, क्योंकि जदयावलि का एक समय व्यतीत होने पर उपरितन स्थिति का एक समय गुणश्रेणी में मिल जाता है । ( पृ० १२०) प्रतः नीचे का एक समय व्यतीत होने पर उपरिम स्थिति का एक समय गुणश्रेणी में मिल जाने से गुणश्रेणी पायाम . जितना था उतना ही रहता है, ऐसा गुणश्रेणी पायाम अवस्थित स्वरूप होने से अवस्थित गुणप्रेणी पायाम कहलाता है। यह अवस्थित गुणधेसी पायाम भी गलिताचशेषवत् दो प्रकार का होता हैउदयादि प्रवस्थित गुणवेणी मायाम तथा उदयावलि बाह्य अवस्थित गुणाधणो