SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ ] लनिधार [ गाथा २६२-२६३ कर्मोका स्थितिबन्ध सहस्रवर्ष पृथक्त्वप्रमाण होता रहा जो यथाक्रम संख्यात गुणहानियों के द्वारा घटकर दिवस पृथक्त्वप्रमाण हो जाता है'। किट्टीकरणद्धाए जाव दुनरिमं तु होदि दिदिको । वस्साणं संखेज्जतहस्तारिए अधादिठिदिवंधो ॥२६२॥ अर्थ- कृष्टिकरणकालके द्विचरम स्थितिबन्धतक नाम, गोत्र व वेदनीय इन तीन अघातिया कर्मों का स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षप्रमाण होता है। _ विशेषार्थ-लोभ संज्वलनकालके तीन भागोंमें से दूसराभाग कृष्टिकरणकाल के द्विचरम स्थितिबन्ध समाप्त होनेतक नाम, गोत्र व वेदनीय इन तोन अघातियाकर्मों का स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षप्रमाण ही होता है, क्योंकि घातिया कर्मोके स्थितिबंधापसरण होने के समान अघातियाकर्मोके स्थितिबन्धका बहुत अधिक अपसरण होना असम्भव है । इसलिए द्विचरम स्थितिबन्धतक इनका स्थितिबन्ध नियमसे संख्यातहजार.. वर्षप्रमाण होता है । किट्टीयद्धाचरिमे लोहस्संतो मुहुत्तियं बंधो । दिवसंतो घादीणं वेवस्संतो प्रधादीणं ॥२६॥ अर्थ-कृष्टिकरणकालमें अन्तिम स्थितिबन्ध लोभ संज्वलनका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण, घातियाकर्मोका कुछ कम एकदिनप्रमाण तथा अघातियाकर्मोंका कुकम दो. वर्षप्रमाण होता है ।। विशेषार्थ- कृष्टिकरण काल में जो अन्तिम स्थितिवन्ध होता है, वह बादर. साम्परायिकका अन्तिम स्थितिबन्ध है । वह स्थितिबन्ध लोभ संज्वलनका अन्तर्मुहर्तप्रमाण होता है जो क्षपकश्रेरिण में होनेवाले स्थितिबन्धसे दूना है ; ज्ञानावरण, दर्शतावरण, अन्तराय इन तीन घातिया कोका कुछकम एकदिन रात्रिप्रमाण है जो क्षपकके बादरसाम्परायिकगुणस्थानमें होनेवाले अन्तिम स्थितिबन्धसे दूना है तथा नाम-गोत्र पौर १. ज. प. पु. १३ पृ. ३१६ । २. ध. पु. ६ पृ. ३१४ । क. पा. सुत्त पृ. ७०३ चूर्णिसूत्र २६२ । ३. ज.ध. पु. १३ पृ. ३१६ । ४. प. पु. ६ पृ. ३१४ । क. पा. सु. पृ. ७०३ सूत्र २६३-२६५ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy