SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .१८ ] लब्धिसार [ गाथा २२ मनःपर्यय-केवलज्ञानावरण ) नौं दर्शनावरण ( चक्षु-चक्षु-अवधि-केवलदर्शनावरगा, स्त्यानगद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, निद्रा, प्रचला) पांच अंतराय (दान-लाभ-भागउपभोग-वीर्यातराय ) इसप्रकार तीन घातियाकर्मोकी १६ प्रकृतियां, सातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी-अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरग-संज्वलन क्रोध-मान-मायालोभ ये १६ कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भव, जुगुप्सा, देवगति, देवगत्यानुपूर्वां, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरअङ्गोपाङ्ग (देवचतुरक), अस, वादर, पर्याप्त. प्रत्येकशरीर (त्रसचतुष्क), वर्ण-न्धि-रस-स्पर्श (वर्गाचतुष्क), अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास (अगुरुलचुचतुष्क), सम चतुरस्र संस्थान, तेजमशरीर, कामगाशरीर, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, प्रादेय, यशः कीर्ति (स्थिरादिछह) निर्माण और उच्चगोत्र इन ७१ प्रकृतियोंको बांधता है । आगे देव-नरकतिम प्रथमोपशमसम्यक्त्वाभिमुख मिथ्यादृष्टि के द्वारा बध्यमान प्रकृतियों को कहते हैं- . : तं सुरचउक्कहीणं णरच उबज्ज जुद पयडिपरिमाणं । , सुरछप्पुढवीमिच्छा सिद्धोसरणा हु बंधति ॥१२॥ अर्थ-उन (उपर्युक्त ७१ प्रकृतियों) में से देवचतुष्कको कम करके मनुप्य चतुष्क (मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानपूर्वी, प्रौदारिकशरीर, औदारिक शरोरगंगोपांग) और वज्रर्षभनाराचसंहननको मिलानेसे इन ७२ प्रकृतियोंको, बन्धापसरण कर चुक नेपर मिथ्यादृष्टिदेव और प्रथमादि छह पृथिवियोंके. नारकी बांधते हैं। . विशेषार्थ-प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख देव व प्रथम छह पृथ्वीके नारकी प्रायोग्यलब्धिमें बन्धापसरण करनेके पश्चात् इन ७२ प्रकृतियोंका बन्ध करते हैं:पांचज्ञानावरग, नीदर्शनावरण, सातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी प्रादि १६ कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मरणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरअंगोपांग, वर्षभनाराचसंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्ग्नानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त बिहायोगति, स, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, प्रादेय, यशःकीति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय ये ७२ प्रकृतियां हैं । १. घ. पु. ६ पृ. १३३-३४ । ज. प. पु. पृ. २११ । एवं प. २२५-२२६ । २. प. पु. ६ पृ. १४०-१४१ । ज.ध. पु. १२ पृ. २११-१२ ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy