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सब्धिसार
[ गाथा २५२ विशेषार्थ-अन्तरकरण कर चकने के पश्चात् अनन्तर प्रथम समयमें नपुंसकवेदको उपशमानेकी क्रिया प्रारम्भ कर एक अन्तर्मुहूर्तकालमें नपुसकवेदको उपशमा देता है । तत्पश्चात् दूसरे अन्तर्मुहूर्त में स्त्रीवेद को उपशमाता है । पुनः तीसरे अन्तमुहूर्तमें हास्य, रति, परति, शोक, भय, जुगुप्सा और पुरुषवेद इन सात नोकषायका उपशम करता है । तत्पश्चात् अप्रत्याख्यानक्रोध, प्रत्याख्यानक्रोध और संज्वलनक्रोधको अन्तमुहर्तकालद्वारा उपशान्त करता है । उसके बाद एक अन्तर्मुहूर्तकाल में अप्रत्याख्यानमान, प्रत्याख्यानमान व संज्वलनमानका उपशम करता है । तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्तकालद्वारा अप्रत्याख्यानमाया, प्रत्याख्यानमाया व संज्वलनमायाका उपशम करता है । उसके बाद अन्तर्मुहूर्तकालमें अप्रत्याख्यानलोभ, प्रत्याख्यानलोभ और संज्वलनलोभको उपशान्त करता है । इसप्रकार क्रमशः सात अन्तर्मुहुर्तकालमें चारित्र मोहनीयकर्मको २१ प्रकृतियोंका प्रशस्त उपशम करता है ।
आगे सवप्रथम नपुंसकवेदके उपशमका विघाम करते हैंअंतरकदपढमादो पडिसमयमसंखगुणविहाणकमे । णुवसामेदि हु संडं उवसंतं जाण ण च भएणं ॥२५२॥
अर्थ-अन्तर किये जानेके प्रथम समयसे लेकर प्रतिसमय असंख्यातगुणे क्रम विधानसे नपुसकवेदके प्रदेशपुजको उपशमाता है, अन्य कर्मोको नहीं उपशमाता । .. विशेषार्थ-- अन्तरकरण करनेके पश्चात् अनन्तर समयसे लेकर अन्तमुहर्तकालतक आयुक्त (उद्यत्त) करमद्वारा नपुसकवेदका उपशामक होता है, शेष कर्मोको तो किचिन्मात्र भी नहीं उपशमाता, क्योंकि उनकी उपशामनक्रियाका अभी भी प्रारम्भ नहीं हरा है। इस प्रकार प्रायुक्तझ्यिाके द्वारा नपुसकवेदके उपशमको प्रारम्भकर उपशमित करता हुआ प्रतिसमय असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे नपुसकवेदके प्रदेशपुञ्जको उपशान्त करता है। प्रथमसमयमें जिस प्रदेशपुञ्जको उपशमाता है वह स्तोक है । दूसरे समयमें उससे असंख्यातगुरणे प्रदेशपुजको उपशमाता है । इसप्रकार नपुसकवेदके उपशान्त होनेके अन्तर्मुहूर्त काल तक असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे उपशमाता है, क्योंकि प्रतिसमय कारणभूत परिणामोंकी वृद्धिके माहात्म्यवश प्रतिसमय असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे नपुंसकवेदके प्रदेशपुजको उपशमाता है' ।
१. ज. प. पु. १३ पृ. २७२-७३ ।