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________________ लब्धिसार १८८ ] [ गाथा २३३-२३४ इस स्थल पर अल्पबहुत्वको रूपणामें पाई जाने वाली विशेषता का कथन अगली गाथामें करते हैं मोहगपल्लासंखटिदिबंधसहस्सगेसु नीदेसु । मोहो तीलिय हेट्ठा, असंखगुणहीणयं होदि ॥२३३॥ अर्थ-मोहनीयकर्म सम्बन्धी पल्यके असंख्यातवेंभाग प्रमाणवाले हजारों स्थितिबन्धों के व्यतीत हो जानेपर मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध ज्ञानावरणादि कर्मोंके स्थितिबन्धसे असंख्यातगुणा हीन होता है । विशेषार्थ-विशुद्धिरूप परिणामोंमें वृद्धि होने पर अतिशय अप्रशस्त मोहनीयकर्मके स्थितिबन्धका एकबार में ही विशेष घात होकर ज्ञानावरणादि चार कर्मोके स्थितिबन्धकी अपेक्षा कम स्थितिवाला होता हुआ नियमसे असंख्यातगुणा हीन हो जाता है इसलिये यहां पर संख्यातगुणा हीन आदि अन्य विकल्प सम्भव नहीं है । जबतक मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध ज्ञानावरणादि चार कर्मोंके स्थितिबन्धसे अधिक था तबतक वह असंख्यातगुणा था। अब नसंख्यातगुणे स्थानमें असंख्यातगुणा हीन हो गया। इसकी अपेक्षा नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प है, उससे मोहनीयकर्मका स्थितिवन्ध असंख्यात गुणा तथा उससे ज्ञानावरादि चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुग्गा है। तदनन्तर दूसरे क्रमका निर्देश करते हैंतेत्तियमेत्ते बंधे समतीदे वीसियाण हेट्ठावि । 'एक्कसराहो मोहो असंखगुणहीणयं होदि ॥२३४॥ अर्थ- उतने ही अर्थात् संख्यातहजार स्थितिबन्धों के व्यतीत हो जाने पर बीसिया अर्थात् नाम व गोत्रकर्मके स्थितिबन्धसे मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा हीन हो जाता है । यह एक सदृश है अर्थात् असंख्यातगुणा होन ही है, अन्य प्रकार नहीं है। १. ज. प. पु. १३ पृ. २४२-२४४ । २. एकसदृश एकशराघात इत्यर्थः ।
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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