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गाथा २०४ ] लब्धिसार
[ १६५ असंख्यातलोकमात्र होते हैं। इनमें सर्वजघन्य प्रतिपातस्थान उत्कृष्ट संक्लेशसे असंयतसम्यक्त्वको जानेवाले संयतके अन्तिम समयमें होता है । उत्कृष्ट प्रतिपातस्थान तत्प्रायोग्य संक्लेशसे असंयतसम्यक्त्वको जानेवाले संयतके अन्तिम समय में होता है । ००००००० ०००००००००००० । अन्तर । ये संयमासंयम को जाने वाले संयतके प्रतिपातस्थान हैं । इनमें जघन्य प्रतिपातस्थान सर्व संक्लेशसे संयमासंयमको जानेवाले संयतके अन्तिम समयमें होता है और उत्कृष्ट प्रतिपातस्थान तत्प्रायोग्य संक्लेशसे संयमासंयमको जाने वाले संवतके अन्तिम समय में होता है। ००००००००००००००००००००००००००० ००००००००००००००००००००००००००००००००००००० । अन्तर । ये संयमको प्राप्त होनेवाले जीवके प्रतिपद्यमान या उत्पादस्थान हैं। इनमें से जघन्य प्रतिपद्यमानस्थान भरतक्षेत्रनिवासी मिथ्यात्वसे पीछे आये हुए संयत (मार्य मनुष्य) के होता है । (अकर्मभूमिज अर्थात् भरतक्षेत्र निवासी म्लेच्छ मनुष्यके मिथ्यात्वसे पीछे आकर संयम ग्रहणके प्रथमसमयमें होनेवाला ) जघन्य प्रतिपद्यमान संयमस्थान पूर्व जघन्यसे अनन्तगुणा है । उक्त (म्लेच्छ) मनुष्य के हो देशविरतिसे पीछे अाकर सर्वविशुद्ध संयम ग्रहण के प्रथम समयमें होनेवाला उत्कृष्ट प्रतिपद्यमानस्थान पूर्वोक्त जघन्यसे अनन्तगुणा है । इससे अनन्तगुणा कर्मभूमिमें संयमको प्राप्त करनेवाले देशविरतिसे पीछे आये हुए सर्वविशुद्धसंयत (आर्य मनुष्य) के प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रतिपद्यमान लब्धिस्थान होता है । यह स्थान पूर्वसे अनन्तगुणा है' ।
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० ०००००००००००। अन्तर । यहां पर उपरिम अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थान सामायिकछेदोपस्थापनाशुद्धि संयतजीवके हैं । अधस्तन स्थान परिहारशुद्धिसंयत जीवके होते हैं। उनमेंसे परिहारशुद्धिसंयत जीवका जघन्य प्रतिपातस्थान पूर्वके स्थानसे अनन्तगुणा है । वह किसके होता है ? सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयमों के अभिमुख हुए तत्कायोग्य संक्लिष्ट परिहार विशुद्धि संयतके अन्तिम समयमें होता है। उससे उसीका उत्कृष्ट अनन्तगुणा है। वह किसके होता है ? सर्वविशुद्ध परिहारसंयतके होता है। उससे सामायिक-छेदोपस्थापना यमियों का उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है । यह किसके होता है ? तदनन्तर समयमें सूक्ष्मसाम्परायशुद्धि संयमको ग्रहण करनेवाले सर्वविशुद्ध उक्त संयतके होता है।
१. ध पु ६ पृ. २८४-८५-८६ !