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________________ गाथा १६३ ] लब्धिसार [ १३६ उत्कृष्ट अनबाधा संख्यातगुणी है, क्योंकि अपूर्वकरणके प्रथम समय में होनेवाले संख्यातगुणे स्थितिबन्यकी पात्राधाका ग्रहण है । ये सब अन्तर्मुहूर्त प्रमाण हैं ।।१४।। उससे सम्यक्त्वप्रकृतिकी आठवर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा है, क्योंकि अन्तमु हर्तकालसे पाठवर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा सिद्ध है ।।१५।। (गाथा १५५) । उससे सम्यक्त्वप्रकृतिका असंख्यातवर्षप्रमाण अन्तिम स्थिति काण्डक असंख्यातगुणा है, क्योंकि वह पल्यके असंख्यातवेंभागप्रमारग है ।।१६।। उससे सम्यरिपथ्यात्वप्रकृतिका असख्यांतवर्षप्रमाण अन्तिम स्थितिकाँडक विशेष अधिक है । एक प्रावलिकम आठवर्ष विशेषका प्रमाण है, इसका कारण सुगम है ।।११७।। (गाथा १५६) उससे मिथ्यात्वका क्षय होनेपर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका प्रथम स्थितिकाण्डक असंख्यातगरगा है, क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यम्मिथ्यात्वके अन्तिम स्थितिकाण्डकसे द्विचरम स्थितिकांडक असंख्यातगुणा है । इसप्रकार त्रिचरम और चतुश्चरम ग्रादि क्रमसे संख्यातहजार स्थितिकाण्डक नीचे जाकर मिथ्यात्व का क्षय होने पर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका तत्सम्बन्धी यह प्रथम स्थिति कांडक है । इसलिये यह स्थितिकाण्डक असंख्यातगुरणा है ।।१८।। उससे मिथ्यात्व सत्कर्मवालेके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकाण्डक असंख्यातगुणा है, क्योंकि मिथ्यात्व सत्कर्मबालेके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जो अन्तिम स्थितिकाण्डक है, वह पूर्वके स्थितिकांडकसे अनन्तर अधस्तनवर्ती होनेसे पूर्वके स्थितिकाण्डकसे असंख्यातगुणा है ।। १६ ।। ( गाथा १५७ ) उससे मिथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकाण्डक विशेष अधिक है, क्योंकि मिथ्यात्वके उदयावलि बाह्य समस्त स्थितिसत्कर्मका ग्रहण होता है, परन्तु सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उस समय अधस्तन पल्योपमके असंख्यातवेंभागप्रमाण स्थितियोंको छोड़कर उपरिम बहुभागप्रमाण स्थितियोंका ग्रहण होता है । इस कारण अबस्तन असंख्यातवेंभाग मात्रका प्रवेश होकर मिथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकाण्डक विशेष अधिक हो गया है ।।२०।। (गाथा १५८) उससे मिथ्यात्व सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके असंख्यातगुण हानिकाले स्थितिकाण्डकोंमें से प्रथम स्थितिकाण्डक असंख्यातगुणा है, क्योंकि पूर्व के स्थितिकांडकसे संख्यातहजार स्थितिकाण्डक असंख्यातगुणे क्रमसे नीचे उतरकर दुरापकृष्टि संज्ञक स्थितिके असंख्यात बहुमागके द्वारा इस स्थितिकाण्डककी प्रवृत्ति होतो है ।।२१।। उससे
SR No.090261
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, Philosophy, & Religion
File Size16 MB
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