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________________ ना कुबल काव्य पर परिच्छेदः १३ मद्य का त्याग 1-देखो, जिन लोगों को मद्य पीने का व्यसन लगा हुआ है उनके शत्रु उनसे कभी न करेंगे और जो कुछ उन्हें गान प्रतिष्ठा प्राप्त है वह गी जाती रहेगी। 2-कोई भी शराड न पिये, यदि कोई पीना ही चाहे तो लोगों । को पीने दो कि जिन्हें आप पुरुषों से मानमर्यादा मिलने की परवाह नहीं है। ____ 3-जो आदमी नशे में चर है उसकी आकृति वा उसको जन्म देने . वाली माता को ही दुरी लगती है । फिर भला वह सत्पात्र पुरुषों को कैसी लगेगी? 4-जिन लोगों को मदिरापान को घणित आदत पड़ी हुई है लज्जारूपिणी सुन्दर सनरो अपना मुंह फेर लेती है। 5-यह तो असीम मूर्खता और अपात्रता है कि अपना धन खर्च करे और बदले में विस्मति तथा रिभ्रम को मोल लेवे । जो लोग प्रतिदिन उस विष का पान करते हैं कि जिसे ताड़ी या मद्य कहते हैं वे मानो महानिन्द्रा में ग्रस्त हैं। उनमें और मृतक में कोई अन्तर नहीं होत:: ___7-0ो लेग चोरी से मदिरा पीते है और अपने समय को देत अवस्था में तथा त्शूि-यता में गमाते हैं. उनके पड़ोसी शीघ्र ही इस बात को जान जायेगे और उन्हें घृणा की दृष्टि से देखेंगे। 8-मापायी व्यर्थ ही यह कहने का ढोंग न करे कि मैं तो मदिरा को जानता ही नहीं, क्योंकि ऐसा कहने से वह उस दुष्कृत्य के साथ झूठ बोलने का पाप और अधिक शामिल करता है। 9-जो रा-रासे को सीख देने का प्रयत्न करता है, वह उस म/ के समान है जो पानी में डूबे हुए आदमः को मसाल लेकर दूँढ़ता है। 10...जो आदमी अपनी सचेत अवस्था में किसी दूसरे दारूकुट्टे की दुर्गति को नाय बेखो से देखता है तो क्या वह निज का अनुमान नहीं लगा सकहा कि जब ताहाशे में होता है तो उसकी भी यही दशा होती होगी। 295
SR No.090260
Book TitleKural Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG R Jain
PublisherVitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP
Publication Year2001
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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